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ही अन्यथा श्रावक श्राविका खड़े खड़े इसी पुस्तक के पृष्ठ ६ पर दिया हुआ "श्रीसिद्धाचलजीका स्तोत्र" हाथ जोडकर थोडासा मस्तक झुकाकर मीठी सुरीली आवाज से पढ़े |
इसके बाद विधिपूर्वक चैत्यवंदन करे । चैत्यवंदन के बाद इस पुस्तक के प्रारंभ में ही दिये हुये दोहे पढ़कर क्रमसे २१ क्षमाश्रमण देवें । अंत में अविधि श्राशातना हुई होवे तो “मिच्छामि दुक्कडं "
कह कर क्षमा
प्रार्थी बने.
इति ॐ शान्तिः ! शान्तिः !! शान्तिः !!!
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