Book Title: Siddhachal Tirth ke 21 Kshamashraman
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 28
________________ तुंही ब्रह्मा तुंही विधाता, तुं जगतारणहार । तुज सरीखा नहि देव जगतमां, अडवडीया अाधार ॥ माता० ॥४॥ तुहीं भ्राता तुही त्राता, तुंही जगतनो देव । सुर नर किन्नर वासुदेवा, करता तुज पद सेव ।। माता०॥ ५ ॥ श्रीसिद्धाचल तीरथकेगे, राजा ऋषभ जिणंद । कीर्ति करे माणेक मुनि ताहरी, टालो भवभयफंद ।। माता० ॥६॥ (८) तुमतो भले बिराजोजी, श्रीसिद्धाचलके वासी साहेब भले विराजाजी । अंचली ।। मरुदेवीनो नंदन रूडो, नाभिनरिंद मल्हार । जुगलाधर्म निवारण आन्या, पूर्व नवाणुं चार । तुमे० १॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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