Book Title: Siddhachal Tirth ke 21 Kshamashraman
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 26
________________ ( २४ ) इत्यादिक हुये सिद्ध अनंता, सिद्धाचल सुखकाररी ॥ श्री० ॥ ६ ॥ भाव धरी तीरथ गुण गावे, तम लक्ष्मी भविजन पावे | विजयानंद सूरि पद थावे, वल्लभ हर्ष अपार ॥ श्री० ॥ ७ ॥ ( ६ ) सिद्धाचलगिरि भेट्योरे, धन्यभाग हमारा | सिद्धा० अंचली। ए गिरिवरनो महिमा मोटो, कहेतां न आवे पारा । रायणरुख समोसर्या स्वामी, पूर्व नवाणुं वारारे। धन्यभाग हमारा सि० ॥ १ ॥ मूलनायक श्री आदिजिनेश्वर, चौमुख प्रतिमा चारा | अष्टद्रव्यसुं पूजो भावे, समकित मूल आधाररे ॥ धन्य०२ ।। भाव भक्तिसुं प्रभुगुण गावे, अपना जन्म सुधारा । यात्राकरी भविजन शुभ भावे, नरक तिथेच गति वारारे ॥ ध.३॥ दूरदेशांतरथी हुं आव्यो, श्रवणे सुखी गुण तारा। पतित उद्धारण बिरुद तुमारुं, ए तीरथ जग सारारे ॥ ध.४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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