Book Title: Siddhachal Tirth ke 21 Kshamashraman
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 31
________________ ( २६ । श्रीशकुंजय आदिजिन आव्या पूर्व नवाणुं वारजी, अनंत लाभ तिहां जिनवर जाणी समोसर्या निरधारजी । विमलगिरिवर महिमा म्होटो सिद्धाचल ते ठामजी, कांकरे कांकरे अनंता सिद्धा एकसोने आठ गिरिनामजी॥१॥ (४) पुंडरीक मंडन पाय प्रणमोजे आदीश्वर जिनचंदाजी, नेमिविना वीस तीर्थकर गिरि चढिया आनंदाजी। अागम माहे पुंडरीक महिमा भाख्यो ज्ञानदिनंदाजी, चैत्री पूनमदिन देवी चक्केसरीसौभाग्य दियो सुखकंदाजी ॥१॥ yaan समाप्तम् yam AAS Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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