Book Title: Siddhachal Tirth ke 21 Kshamashraman
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 16
________________ ( १४ ) श्रीसिद्धाचल तीर्थस्तवन. ( १ ) हम क्यों छोड़ चले वन माधो-चाल । तो पार भये हम साधो, श्रीसिद्धाचल दरस करीरे | अवतो० अंचली ॥ दश्विर जिन मेहर करीब, पाप पटल सब दूर भयोरे । तनमनपावन भविजनकेरो, निरखी जिनंदचंद सुख थयोरे ॥ श्र० १ ॥ पुंडरिक पमुहा मुनि बहु सिद्धा, सिद्धक्षेत्र हम जाचलह्योरे । पशु पंखी जिहां छिनकमें तरिया, तो हम दृढ विस्वास गोरे ॥ ०२ ॥ जिन गणधर अधिमुनि नाहीं, किस गेहूं पुकार करूंरे । जिम तिम कर विमलाचल भेट्यो, भवसागर से नाहीं डरूंरे ॥ श्र०३ ॥ दूरदेशांतर में हम ऊपने, Jain Educ कुगुरु कृपथका जाल पयार lal Use Only । www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36