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श्रीसिद्धाचल तीर्थस्तवन.
( १ )
हम क्यों छोड़ चले वन माधो-चाल । तो पार भये हम साधो,
श्रीसिद्धाचल दरस करीरे | अवतो० अंचली ॥
दश्विर जिन मेहर करीब,
पाप पटल सब दूर भयोरे । तनमनपावन भविजनकेरो, निरखी जिनंदचंद सुख थयोरे ॥ श्र० १ ॥ पुंडरिक पमुहा मुनि बहु सिद्धा, सिद्धक्षेत्र हम जाचलह्योरे ।
पशु पंखी जिहां छिनकमें तरिया, तो हम दृढ विस्वास गोरे ॥ ०२ ॥ जिन गणधर अधिमुनि नाहीं, किस गेहूं पुकार करूंरे । जिम तिम कर विमलाचल भेट्यो, भवसागर से नाहीं डरूंरे ॥ श्र०३ ॥ दूरदेशांतर में हम ऊपने,
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