Book Title: Siddhachal Tirth ke 21 Kshamashraman
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 22
________________ इण गिरि सिद्धारे, मुनि अनंत प्रसिद्धार । प्रभु पुंडरीक गणधारी, पुंडरीक गिरि नाम कहारी । ___ ए सहु महिमा है थारी | जिनंदा० ॥४॥ तारक जग दीठारे, पापपंक सहु नीठारे । इच्छा मो मनमें भारी, में कीनी सेवा थारी । हुं मास रह्यो शुभ चारी । जिनंदा० ॥ ५॥ अब मोहे तारोरे, विरुद तिहारोरे । तीरथ जिनवर दो भेटी, हुं जन्म जरा दुःख मेटी। हुँ पायो गुणनी पेटी । जिनंदा०॥६॥ द्राविड वारिखिल्लारे, दशकोडी मुनि मिल्लारे। हुआ मुक्ति रमणी भरतारा, कार्तिक पूनम दिन मारा। जिनशासन जग जयकारा ॥ जिनंदा० ॥७॥ संवत शिखीचारारे, निधि इंदु उदारारे । आतमको अानंदकारी, जिनदर्शनकी बलिहारी। पाम्यो भवजलधि पारी । जिनंदा०॥८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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