Book Title: Siddhachal Tirth ke 21 Kshamashraman
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha
View full book text
________________
{ १२ /
एक तीजे पांचमे भव वरे शिव सुखकारक,
यह आस धारी सरण थारी आतमा दुःखवारकं ॥ ३ ॥
( २ )
विमल केवल ज्ञानकमला कलित त्रिभुवनहितकरं । सुरराजसंस्तुत चरणपंकज नमो आदिजिनेश्वरं ॥ १ ॥ विमलगिरिवर शृंगमंडन प्रवरगुणगण भूधरं । सुरसुरकिन्नरकोटिसेवित नमो आदिजिनेश्वरं ॥ २ ॥ करती नाटक किन्नरीगण गाय जिनगुण मनहरं । निर्जरावलि नमे अहनिश नमो आदिजिनेश्वरं ॥ ३ ॥ पुंडरीक गणपति सिद्धि साधी कोटिपण मुनि मनहरं । श्री विमलगिरिवर शृंग सीधा नमो आदिजिनेश्वरं ॥ ४ ॥ निजसाध्यसाधन सुरमुनिवर कोट्यनत ए गिरिवरं । मुक्तिरमणी वर्या रंगे नमो आदिजिनेश्वरं ॥ ५ ॥ पाताल नर सुर लोकमांही विमलगिरिवरतो परं । नहीं अधिक तीरथ तीर्थपति कहे नमो आदिजिनेश्वरं ॥ ६ ॥ इम विमलगिरिवर शिखरमंडन दुग्खविहंडन ध्याइये । निजशुद्धसत्ता साधनार्थं परमज्योति निपाइये । जितमोहकोह विछोह निद्रा परमपदस्थित जयकरं । गिरिराजसेवा करणतत्पर पद्मविजय सुहितकरं ॥ ७ ॥
Jain Education International For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36