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श्रीजिन आगम हम मन मान्यो, तबही कुपंथको जाल जोरे । अ०४॥ तो तुम शरण विचारी आयो, दीन अनाथको शरण दियोरे । जयो विमलाचल पूरण स्वामी, जनम जनमको पाप गयोरे ।। अ० ५।। दूरभवी अभव्य न देखे, सरिधनेसर एम कटोरे। विमलाचल फरसे जो प्राणी, मोक्ष महल तिण वेग लह्योरे। .. जयो जगदीसर तू परमेसर, पूर्व ननानवे वार थयोरे। समवसरण रायणतले तेरो, निरखी अघ मम दूर गयोरे ।। अ०७ ॥ श्रीविमलाचल मुझ मन वसीयो, मानुं संसारनो अंत थयोरे। यात्रा करी मन तोष भयो अब, जनम मरण दुःख दूर गयोरे । अ०८ निर्मल मुनिजन जो हैं तार्या, तेतो प्रसिद्ध सिद्धांत कह्योरे।
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