Book Title: Siddhachal Tirth ke 21 Kshamashraman Author(s): Vallabhvijay Publisher: Atmanand Jain Sabha View full book textPage 3
________________ वन्दे श्रीवीरमानन्दम्. "श्रीसिद्धगिरितीर्थके२१ क्षमाश्रमण" सिद्धाचल सिमरु सदा, सोरठ देश मझार । मनुज जन्म शुभ पायके, वंदू वार हजार ॥१॥ अंग वसन मन भूमिका, पूजोपकरण सार । न्यायद्रव्य विधि शुद्धता, शुद्धि सात प्रकार ॥ २ ॥ कार्तिक सुदि पूनम दिने, दशकोटी परिवार । . द्राविड वारिखिल्लजी, सिद्ध हुये निरधार ॥३॥ तिसकारण कार्तिक दिने, संघ सकल परिवार । आदिनाथ सन्मुख रही, चमाश्रमण अधिकार ।। ४ ॥ वर्णन इकवीस नामसु, नाम प्रथम अभिराम । सर्बुजय शुकरायसे, सिमरो शिवसुख धाम ।। ५ ॥ "सिद्धाचल सिमरूं सदा, सोरठ देश मझार । मनुज जन्म शुभ पायके, वंदू वार हजार ।।" इच्छामि खमासमणो० ॥१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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