Book Title: Siddhachal Tirth ke 21 Kshamashraman
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 4
________________ ( २ ) ( २ ) समवसरे सिद्धाचले, पुंडरीक गणधार । लाख सवा महातम किया, सुरनर सभा मकार ॥ ६ ॥ चैत्री पूनमके दिने, कर अनशन इकमास । पांचकोड़ मुनिसे कियो, मुक्ति निलयमें वास ॥ ७ ॥ तिसकारण पुंडरिकगिरि, नाम हुआ विख्यात | मनवचकाया वंदिये, ऊठी नित परभात ॥ ८ ॥ “सिद्धाचल सिमरुं सदा, सोरठ देश मकार । मनुज जन्म शुभ पायके, वंदूं वार हजार ||" इच्छामि खमासमणो० ॥ २ ॥ ( ३ ) पांडव कोड़ी वीससे, मोच गये इसठाम । सिद्ध अनंते इह हुए, सिद्धक्षेत्र तिय नाम ॥ ६ ॥ "सिद्धाचल सिमरुं सदा, सोरठ देश मकार | मनुज जन्म शुभ पायके, वंदूं वार हजार ॥" इच्छामि खमासमणो० ॥ ३ ॥ ( ४ ) सठ तीरथ न्हायके, अंगरंग घड़ीएक । तुंबजिल के स्नानसे, प्रगट्यो चित्त विवेक ।। १० ॥ चंद्रसेखर आदि कई, कर्ममैल नृप धोय । Jain विमल हुए अचलोपरि, विमलाचल तिथ जोय ॥। ११ ॥ || ||

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