Book Title: Siddhachal Tirth ke 21 Kshamashraman
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha
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प्रभुवचने अनशन करी, कियो मुक्तिमें वास । कदंब गिरि नामे नमो, होवे लीलविलास ॥ ३४ ॥
"सिद्धाचल सिमरु सदा, सोरठ देशमझार । मनुजजन्म शुभ पायके, वंदू वार हजार ॥"
इच्छामि खमासमणो० ॥ १६ ॥
(२०)
पाताले जस मूल है, उज्वल गिरिका सार । त्रिकरण योगे वंदिये, अल्प होय संसार ॥ ३५॥
"सिद्धाचल सिमरूं सदा, सोरठ देशमझार । मनुजजन्म शुभ पायके, वंदू वार हजार ॥" इच्छामि खमासमणो० ॥२०॥
(२१) तन मन धन सुत वल्लभा, स्वर्गादिक सुखभोग । जो वांछे सो संपजे, शिवरमणी संयोग ॥ ३६ ॥ विमलाचल परमेष्ठिका, ध्यान धरे छै मास । तेज अपूरव विस्तरे, सफल होय सब आस ।। ३७॥ सिद्धि लहे भव तीसरे, ये हैं प्रायिक वाच । उत्कृष्टे परिणाम से, अंतर महुरत साच ॥३८॥ सर्वकाम दायक नमो, कीनी नाम पिछान | ane
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