Book Title: Shrutgyan Amidhara
Author(s): Kshamabhadrasuri
Publisher: Shrutgyan Amidhara Gyanmandiram
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॥१२३॥ करुणावसेण नवरं अणुसासइ तंपि सुद्धमग्गंमि । अञ्चंताजोग्गं पुण अरत्तदुट्ठो उवेहेइ ॥१२४॥ उत्तमगुणाणुराया कालाइदोसओ अपत्तावि । गुणसंपया परत्थवि न दुल्लहा होइ भव्वाणं ॥१२५॥ *गुरुपयसेवानिरओ गुरुआणाराहणंमि तल्लिच्छो । चरणभरधरणसत्तो होइ जई नन्नहा नियमा ॥१२६॥ सव्वगुणमूलभूओ भणिभोज आयारपढमसुत्ते जं। गुरुकुलवासोवस्सं वसेज तो तत्थ चरणत्थी ॥१२७॥ एयस्स परिच्चाया सुटुंछाइवि सुंदरं भणियं । कम्माइवि परिसुध्धं गुरुआणावत्तिणो बिंति ॥१२८॥ ता धन्नो गुरुआणं न मुयइ नाणाइगुणगणनियाणं । सुपसन्नमणो सययं कयन्नुयं भणसि भावितो ॥१२९॥ गुणवं च इमो सुत्ते जहत्थगुरुसद्भायणं इट्ठो । गुणसंपयादरिदो जहुत्तफलदायगो न मओ ॥१३०॥ मूलगुणसंपउत्तो न दोसलवजोगओ इमो हेओ । महुरोवक्रमओ पुण पवत्तियवो जहुत्तम्मि ॥१३१॥ पत्तो ससीससद्दो एव कुणंतेण पंथगेणावि। गाढप्पमाइणोवि हु सेलगसूरिस्स सीसेणं ॥१३२॥ ॥ एवं गुरुबहुमाणो कयन्नुया सन्नुलगच्छगुणवुड्ढी । अणवत्थापरिहारो हुंति गुणा एवमाईया ॥१३३॥ इहरा वुत्तगुणाणं विवजओ तह य अत्तउक्करिसो। अप्पञ्चओ जणाणं बोहिविघायाइणो दोसा ॥१३४॥ बकुसकुसीला तित्थं दोसलवा तेसु नियमसंभविणो । जइ तेहिं वजणिज्जो अवज्जणिज्जो तो नत्थि ॥१३५| इय भावियपरमत्था मज्झत्था नियगुरुंन मंचंति । सव्वगुणसंपओगं अप्पाणमिवि अपेच्छंता ॥१३६।। एयं अवमन्नतो वुत्तो सुत्तंमि पावसमणोत्ति । महमोहबंधगोवि य खिसंतो अपडितप्पंतो ॥१३७॥ सविसेसंपि जयंतो तेसिमवन्नं विवज्जए सम्मं । तो दसणसोहीओ सुद्धं चरणं लहइ साहू ॥१३८॥ ॥ इय सत्तलक्खणधरो होइ चरित्ती तओ य नियमेण । कल्लाणपरंपरलाभजोगओ लहइ सिवसोक्खं ॥१३९।। *दुविहंपि धम्मरयणं
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