Book Title: Shrutgyan Amidhara
Author(s): Kshamabhadrasuri
Publisher: Shrutgyan Amidhara Gyanmandiram
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पयं । अविसुद्धस्स न वड्ढइ, गुणसेढी तत्तिया ठाइ ॥ ६५ ॥ जइ दुक्करदुक्करकारउत्ति भणिओ जहट्ठिओ साहू । तो कीस अज्जसंभूअविजयसीसेहिं नवि खमिकं ॥ ६६ ।। जइ ताव सव्वओ सुंदरुत्ति कम्माण उवसमेण जई। धम्मं वियाणमाणो, इयरो किं मच्छरं वहइ ? ॥ ६७ ॥ अइसुटिओत्ति गुणसमुइओत्ति जो न सहइ जइपसंसं । सो परिहाइ परभवे, जहा महापीढपीढरिसी ॥ ६८ ॥ परपरिवायं गिण्हइ, अट्ठमयविरल्लणे सया रमइ । डज्झइ य परसिरीए, सकसाओ दुक्खिओ निश्चं ॥ ६९ ॥ विग्गहविवायरुइणो, कुलगणसंघेण बाहिरकयस्स । नत्थि किर देवलोएवि देवसमिईसु अवगासो ॥ ७० ॥ जइ ता जणसंववहारवज्जियमकज्जमायरइ अन्नो । जो तं पुणो विकत्थइ, परस्स वसणेण सो दुहिओ ॥ ७१ ।। सुठुवि उज्जव (म) माणं, पंचेव करिति रित्तयं समणं । अप्पथुई परनिंदा, जिभोवत्था कसाया य ॥ ७२ ।। परपरिवायमईओ, दूसइ वयणेहिं जेहिं जेहिं परं । ते ते पावइ दोसे, परपरिवाई इअ अपिच्छो ॥ ७३ ॥ थद्धा छिद्दप्पेही, अवण्णवाई सयंमई चवला । वंका कोहणसीला, सीसा उव्वेअगा गुरुणो ॥५४॥ जस्स गुरुम्मि न भत्ती, न य बहुमाणो न गउरवं न भयं । नवि लज्जा नवि नेहो, गुरुकुलवासेण किं तस्स ? ॥ ७५ ॥ रुसइ चोइज्जतो, वहई हियएण अणुसयं भणिओ । न य कम्हि करणिज्जे, गुरुस्स आलो न सो सीसो ॥ ७६ ॥ उव्विल्लणसूअणपरिभवेहिं अइभणियदुटुभणिएहिं । सत्ताहिया सुविहिया, न चेव भिंदंति मुहरागं ॥ ७७ ॥ माणंसिणोवि अवमाणवंचणा ते परस्स न करंति। सुहदुक्खुग्गिरणत्थं, साहू उअहिव्व गंभीरा ॥ ७८ ॥ मउआ निहुअसहावा, हासदवविवजिया विगहमुक्का । असमंजसमइबहुअं, न भणंति अपुच्छि आ साहू ॥ ७९ ॥ महुरं निउणं थोवं, कज्जावडिअं अगव्वियमतुच्छं ।
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