Book Title: Shrutgyan Amidhara
Author(s): Kshamabhadrasuri
Publisher: Shrutgyan Amidhara Gyanmandiram

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Page 199
________________ १८० सुभणिओऽवि । न भणइ वाससएणऽवि जस्सऽवि जीहासयं हुज्जा ॥ २७८ ॥ नरएस जाइं अइकक्खडाइँ दुक्खाइँ परमतिक्खाई । को वण्णेही ताई ?, जीवंतो वासकोडीऽवि ॥ २७९ ॥ कक्खडदाह सामलिअसिवणवेयरणिपहरणसएहिं । जा जायणाउ पावंति, नारया तं अहम्मफलं ॥ २८० ॥ तिरिया कसंकुसारानिवायवहबंधमारणसयाई । नऽवि इहयं पावेंता, परत्थ जइ नियमिया हुता ॥ २६१ ॥ आजीव संकिलेसो, सुक्खं तुच्छं उवद्दवा बहुया । नीयजणसिट्ठणावि य, अणिट्ठवासो अ मागुस्से ॥२८२॥ चारगनिरोहवहबंधरोगधणहरणमरणवसणाई । मणसंतावो अजसो. विग्गोवणया य माणुस्से ।। २८३ ॥ चिंतासंतावेहि य, दरिहरूआहिं दुप्पउत्ताहिं । लघृणऽवि मागुस्सं, मरंति केई सुनिधिण्णा ॥ २८४ ॥ देवाऽवि देवलोए, दिव्याभरणाणुरंजियसरीरा । जं परिवडंति तत्तो, तं दुक्खं दारुणं तेसिं ।। २८५ ॥ तं सुरविमा णविभवं, चिंतिय चवणं च देवलोगाओ । अइबलियं चिय जं नवि, फुटइ सयसकरं हिययं ।।२८६॥ ईसाविसायमयकोहमायालोभेहिं एवमाईहिं । देवाऽवि समभिभूया, तेसिं कत्तो सुहं नाम ? ॥२८७॥ धम्मपि नाम नाऊण, कीस पुरिसा सहति पुरिसाणं?। सामित्ते साहीणे, को नाम करिज्ज दासत्तं ? ॥२८८ ॥ संसारचारए चारए व्व आवीलियस्स बंधेहिं । उव्विग्गो जस्स मणो, सो किर आसन्नसिद्धिपहो ॥ २८९ ॥ आसन्नकालभवसिद्धियस्स जीवस्स लक्खणं इणमो । विसयसुहेसु न रज्जइ सव्वत्थामेसु उज्जमइ ॥ २९० ॥ हुज्ज व न व देहबलं, धिइमइसत्तेण जइ न उज्जमसि । अच्छिहिसि चिरं कालं, बलं च कालं च सोअंतो ॥ २९१ ॥ लद्धिल्लियं च बोहिं, अकरितोऽणागयं च पत्थितो । अन्न दाइं बोहिं, सब्भिसि कयरेण मुल्लेण ? ॥ २९२ ॥ संघयणकालबलदूसमारुयालंबणाई धित्तूणं । सव्वं चिय नियमधुरं,

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