Book Title: Shrutgyan Amidhara
Author(s): Kshamabhadrasuri
Publisher: Shrutgyan Amidhara Gyanmandiram

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Page 202
________________ १८३ HEATRAHHATTA समऐ, तह तह सिद्धंतपडिणीओ ॥ ३२३ ॥ पवराई वत्थपायासणोवगरणाइँ एस विभवो मे । अविय महाजणनेया, अहंति अह इड्ढिगारविओ ॥ ३२४ ॥ अरसं विरसं लूहं जहोववन्नं च निच्छए भुत्तुं । निद्धाणि पेसलाणि य, मग्गइ रसगारवे गिद्धो ॥ ३२५ ॥ सुस्सूसई सरीरां, सयणासणवाहणापंसगपरो । सायागारवगुरुओ दुक्खस्स न देइ अप्पाणं ॥ ३२६ ॥ तवकुलछाया: भंसो, पंडिच्चप्फसणा अणिट्ठपहो । वसणाणि रणमुहाणि य, इंदियवसगा अणुहवंति ॥ ३२७ ॥ सहेसु न रंजिज्जा, रूपं दट्ठ पुणो न इक्खिज्जा । गंधे रसे अ फासे, अमुच्छिओ उजमिन्ज मुणी ॥ ३२८ ॥ निहयाणि हयाणि य इंदियाणि घाएहऽणं पयतेणं । अहियत्थे निहयाई, हियकज्जे पूयणिज्जाइ ॥ ३२९ ॥ जाइकुलरूवबलसुअतवलाभिस्सरिय अट्ठमयमत्तो । एयाई चिय बंधइ, असुहाइँ बहुं च संसारे ॥ ३३० ॥ जाईए उत्तमाए, कुले पहाणम्मि रुवमिस्सरियं । बलविज्जाय तवेण य, लाभमएणं च जो खिंसे ॥ ३३१ ॥ संसारमणवयग्गं नीयट्ठाणाई पावमाणो य । भमइ अणंतं कालं, तम्हा उ मए विवज्जिज्जा ॥ ३३२ ।। युग्मम् ॥ सुटुंऽपि जई जयंतो, जाइमयाईसु मज्जइ जो उ । सो मेअज्जरिसि जहा हरिएसबलु व्व परिहाई ॥ ३३३ ॥ इत्थिपसुसंकिलिट्ठ, वसहिं इत्थीकहं च वजंतो। इत्थिजणसंनिसिज्जं, निरुवणं अंगुवंगाणं ॥३३४॥ पुव्वरयाणुस्प्तरणं इथिजणविरहरूवविलवं च । अइबहुअं अइबहुसो, विवज्जयंतो अ आहारं ॥ ३३५ ॥ वज्जंतो अ विभूसं, जइज्ज इह बंभचेरगुत्तीसु । साहु तिगुत्तिगुत्तो, निहुओ दंतो पसंतो अ ॥ ३३६ ॥ त्रिभिर्विशेषकम् ॥ गुज्झोरुवयणकक्खोरुअंतरे तह थणंतरे दर्छ । साहरइ तओ दिटिं, न य बंधइ दिहिए दिहि ॥ ३३७ ॥ सज्झाएण पसत्थं, झाणं जाणइ य सव्वपरमत्थं । सज्झाए वट्टतो, खणे खणे जाइ

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