Book Title: Shrutgyan Amidhara
Author(s): Kshamabhadrasuri
Publisher: Shrutgyan Amidhara Gyanmandiram
View full book text
________________
१८५
बायालमेसणाओ, न रक्खई धाइसिजपिंड च । आहारइ अभि क्खं, विगईओ सन्निहिं खाई ॥ ३५४ सूरप्पमाणभोजी, आहारेई अभिक्खमाहारं । न य मंडलीइ भुंजइ, न य भिक्खं हिंडई अलसो ॥ ३५५ ॥ कीवो न कुणइ लोअं, लजई पडिमाइ जल्लमवणेइ । सोवाहणो अ हिंडइ, बंधइ कडिपट्टयमकज्जे ॥३५६।। गामं देसं च कुलं, ममायए पीठफलगपडिबद्धो । घरसरणेसु पसज्जइ, विहरइ य सकिंचणो रिक्को ॥ ३५७ ॥ नहदंतकेसरोमे जमेइ उच्छोलधोअणो अजओ । वाहेइ य पलियंकं, अइरेगपमाणमत्थुरइ ॥ ३५८ ॥ सोवइ य सव्वराई, नीसठुमचेयणो न वा झरइ । न पमज्जंतो पविसइ, निसिहीयावस्सियं न करे ॥३५९॥ पाय पहे न पमजइ, जुगमायाए न सोहए इरियं । पुढवीदगअगणिमारुअयणस्सइतसेसु निरविक्खो ॥३६०॥ सव्वं थोवं उवहिं, न पेहए न य करेइ सज्झायं। सद्दकरो, झंझकरो लहुओ गणभेयतत्तिल्लो ॥३६१ ॥ खित्ताईयं भुंजइ, कालाईयं तहेव अविदिन्नं गिण्हइ अणुइयसूरे, असणाई अहव उबगरणं ।। ३६२ ॥ ठवणकुले न ठवेई, पासत्थेहिं च संगयं कुणई । निच्चमवज्झाणरओ, न य पेहपमज्जणासीलो ।। ३६३ ॥ रीयइ य दवदवाए, मूढो परिभवइ तहय रायणिए । परपरिवायं गिण्हई, निटूरभासा विगहसीलो ॥ ३५४ ॥ विज्ज मंतं जोगं, तेगिच्छं कुणइ भूइकम्मं च । अक्खरनिमित्तजीवी, आरंभपरिग्गहे रमइ ।। ३६५ ।। कज्जेण विणा उग्गहमणुजाणावेइ दिवसओ सुअइ । अज्जियलाभं भुंजइ, इत्थिनिसिज्जासु अभिरमइ ॥ ३६६ ।। उच्चारे पासवणे, खेले सिंघाणए अणाउत्तो । संथारग उबहीणं, पडिक्कमइ वा सपाउरणो ॥३६७।। न करेइ पहे जयणं, तलियाणं तह करेइ परिभोगं । चरइ अणुबद्धवासे, सपक्खपरपक्खओमाणे ।।३६८ ।। संजोअइ अइबहुरं इंगाल सधूमगं अणट्ठाए । भुंजइ रुवबलट्ठा, न धरेइ अ पाय
Page Navigation
1 ... 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234