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बायालमेसणाओ, न रक्खई धाइसिजपिंड च । आहारइ अभि क्खं, विगईओ सन्निहिं खाई ॥ ३५४ सूरप्पमाणभोजी, आहारेई अभिक्खमाहारं । न य मंडलीइ भुंजइ, न य भिक्खं हिंडई अलसो ॥ ३५५ ॥ कीवो न कुणइ लोअं, लजई पडिमाइ जल्लमवणेइ । सोवाहणो अ हिंडइ, बंधइ कडिपट्टयमकज्जे ॥३५६।। गामं देसं च कुलं, ममायए पीठफलगपडिबद्धो । घरसरणेसु पसज्जइ, विहरइ य सकिंचणो रिक्को ॥ ३५७ ॥ नहदंतकेसरोमे जमेइ उच्छोलधोअणो अजओ । वाहेइ य पलियंकं, अइरेगपमाणमत्थुरइ ॥ ३५८ ॥ सोवइ य सव्वराई, नीसठुमचेयणो न वा झरइ । न पमज्जंतो पविसइ, निसिहीयावस्सियं न करे ॥३५९॥ पाय पहे न पमजइ, जुगमायाए न सोहए इरियं । पुढवीदगअगणिमारुअयणस्सइतसेसु निरविक्खो ॥३६०॥ सव्वं थोवं उवहिं, न पेहए न य करेइ सज्झायं। सद्दकरो, झंझकरो लहुओ गणभेयतत्तिल्लो ॥३६१ ॥ खित्ताईयं भुंजइ, कालाईयं तहेव अविदिन्नं गिण्हइ अणुइयसूरे, असणाई अहव उबगरणं ।। ३६२ ॥ ठवणकुले न ठवेई, पासत्थेहिं च संगयं कुणई । निच्चमवज्झाणरओ, न य पेहपमज्जणासीलो ।। ३६३ ॥ रीयइ य दवदवाए, मूढो परिभवइ तहय रायणिए । परपरिवायं गिण्हई, निटूरभासा विगहसीलो ॥ ३५४ ॥ विज्ज मंतं जोगं, तेगिच्छं कुणइ भूइकम्मं च । अक्खरनिमित्तजीवी, आरंभपरिग्गहे रमइ ।। ३६५ ।। कज्जेण विणा उग्गहमणुजाणावेइ दिवसओ सुअइ । अज्जियलाभं भुंजइ, इत्थिनिसिज्जासु अभिरमइ ॥ ३६६ ।। उच्चारे पासवणे, खेले सिंघाणए अणाउत्तो । संथारग उबहीणं, पडिक्कमइ वा सपाउरणो ॥३६७।। न करेइ पहे जयणं, तलियाणं तह करेइ परिभोगं । चरइ अणुबद्धवासे, सपक्खपरपक्खओमाणे ।।३६८ ।। संजोअइ अइबहुरं इंगाल सधूमगं अणट्ठाए । भुंजइ रुवबलट्ठा, न धरेइ अ पाय