Book Title: Shrutgyan Amidhara
Author(s): Kshamabhadrasuri
Publisher: Shrutgyan Amidhara Gyanmandiram

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Page 200
________________ १८१ निरुज्जमाओ पमुच्चंति ॥ २९३ ॥ कालस्स य परिहाणी, संजमजोगाई नत्थि खित्ताई। जयणाई वट्टियव्वं नहु जयणा भंजए अंगं ॥ २९४ ॥ समिईकसायगारवइंदियमयबंभचेरगुत्तीसु । सज्झायविणयतवसत्तिओ अ जयणा सुविहियाणं ॥ २९५ ॥ जुगमित्तंतरदिट्ठी, पयं पयं चक्खुणा विसोहितो । अव्यक्खित्ताउत्तो, इरियासमिओ मुणी होई ॥ २९६ ।। कज्जे भासइ भासं, अणवज्जमकारणे न भासइ य । विगहविसुत्तियपरिवज्जिओ अ जइ भासणासमिओ ॥ २९७ ॥ बायालमेसणाओ, भोयणदोसे य पंच सोहेइ । सो एसणाइसमिओ, आजीवी अन्नहा होइ ॥ २९८ ॥ पुट्विं चक्खु परिक्खिय, पमज्जिउ जो ठवेइ गिण्हइ वा । आयाणभंडनिक्खेवणाइ समिओ मुणी होइ ॥ २९९ ॥ उच्चारपासवणखेलजल्लसिंघाणए य पाणविही । सुविवेइए पएसे. निसिरंतो होइ तस्समिओ ॥ ३०० ॥ कोहो माणो माया, लोभो हासो रई य अरई य । सोगो भयं दुगुंछा, पञ्चक्खकली इमे सव्वे ।। ३०१ ॥ कोहो कलहो खारो, अवरुप्परमच्छरो अणुसओ अ । चंडत्तणमणुवसमो, तामसभावो अ संतावो ॥ ३०२ ।। निच्छोडण निभंछण निरागुवत्तित्तणं असंवासो । कयनासो अ असम्म, बंधइ घणचिक्कणं कम्मं ॥ ३०३ ॥ युग्मम् ॥ माणो मयऽहंकारो, परपरिवाओ अ अत्तउक्करिसो । परपरिभवोऽवि य तहा, परस्स निंदा असूआ य ॥ ३०४ ॥ हीला निरुवतारित्तणं निरवणामया अविणओ अ । परगुणपच्छायणया, जीवं पाडंति संसारे ॥ ३०५ ॥ युग्मम् ॥ माया कुडंग पच्छन्नपावया कूड कवड वंचणया । सव्वत्थ असम्भावो, परनिक्खेवावहारो अ ॥ ३०६ ॥ छल छोम संवइयरो, गूढायारत्तणं मई कुडिला । वीसंभघायणं पिय भवकोडिसएसुवि नडंति ॥ ३०७ ॥ युग्मम् ॥ लोभो अइसंचयसीलया य किलिट्ठत्तणं अइममत्तं । कप्पन्नमपरि

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