Book Title: Shrutgyan Amidhara
Author(s): Kshamabhadrasuri
Publisher: Shrutgyan Amidhara Gyanmandiram

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Page 197
________________ १७८ बोहेइ अहव अहिअयरे । इअ नंदिसेणसत्ती, तहविय से संजमविवत्ती ॥ २४८ ॥ कलुसीकओ अ किट्टीकओ अ खयरीकओ मलिणिओ अ । कम्मेहिं एस जीवो, नाऊणऽवि मुज्झई जेणं ॥ २४९ ॥ कम्मेहिं वज्जसारोवमेहिं जउनंदणोऽवि पडिबुद्धो । सुबहुंपि विसूरंतो, न तरइ अप्पक्खमं काउं ।। २५० ॥ वाससहस्संऽपि जई, काऊणं संजमं सुविउलंपि । अंते किलिट्ठभावो, न विसुज्झइ कंडरीउ व्व ॥ २५१ ॥ अपेणऽवि कालेणं, केइ जहागहियसीलसामण्णा । साहति निययकज्जं, पुंडरियमहारिसिव्व जहा ॥२५२॥ काऊण संकिलिट्ठ, सामण्णं दुल्लहं विसोहिपयं। सुज्झिज्जा एगयरो, करिज्ज जइ उज्जमं पच्छा ॥२५३ ॥ उज्झिज्ज अंतरि च्चिय, खंडिय सबलादउ व्व हुज्ज खणं । ओसन्नो सुहलेहड न तरिज्ज व पच्छ उज्जमिउं ॥ २५४ ॥ अवि नाम चक्कवट्टी, चइज्ज सव्वंपि चक्रवट्टिसुहं । न य ओसन्नविहारी, दुहिओ ओसन्नयं चयई ॥ २५५ ॥ नरयत्थो ससिराया, बहु भणई देहलालणासुहिओ । पडिओ मि भए भाउअ ! तो मे जाएह तं देहं ॥ २५६ ।। को तेण जीवरहिएण, संपयं जाइएण हुज्ज गुणो ? । जइऽसि पुरा जायंतो, तो नरए नेव निवडतो ॥ २५७ ॥ जावाऽऽउ सावसेसं, जाव य थोवोऽवि अत्थि ववसाओ । ताव करिज्जप्पहियं, मा ससिराया व सोइहिसि ॥ २५८ ।। चित्तूणऽवि सामण्णं, संजमजोगेसु होइ जो सिढिलो । पडइ जई वयणिज्जे सोअइ अ गओ कुदेवत्तं ॥ २५९ ॥ सुच्चा ते जिअलोए जिणवयणं जे नरा न याणंति । सुच्चाणवि ते सुच्चा. जे नाऊणं नवि करेंति ॥ २६० ॥ दावेऊण धणनिहिं. तेसिं उप्पाडियाणि अच्छीणि । नाऊणऽवि जिणवयणं, जे इह विहलंति धम्मधणं ॥ २६१ ॥ ठाणं उच्चच्चयरं, मझं हीणं च हीणतरगं वा । जेण जहिं गंतव्वं, चिट्ठाऽवि से तारिसी होई ॥२६२ ॥ जस्स गुरुम्मि

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