Book Title: Shrutgyan Amidhara
Author(s): Kshamabhadrasuri
Publisher: Shrutgyan Amidhara Gyanmandiram
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१७६
कम्मरयविप्पमुक्का, सिद्धिगइमणुत्तरं पत्ता ॥ २१७ ॥ नाणे दंसणचरणे, तवसंजमसमिइगुत्तिपच्छित्ते । दमउस्सग्गववाए, दवाइअभिग्गहे चेव ॥ २१८ ॥ सदहणायरणाए निचं उज्जुत्त एसणाइ ठिओ । तस्स भवोअहितरणं, पव्वज्जाए य (स) म्मं तु ॥२१९॥ जे घरसरणपसत्ता, छक्कायरिऊ सकिंचणा अजया । नवरं मुत्तण घरं, घरसंकमणं कयं तेहिं ॥ २२० ॥ उस्सुत्तमायरंतो, बंधइ कम्मं सुचिक्कणं जीवो । संसारं च पवड्ढइ, मायामोसं च कुव्वह य ॥ २२१ ॥ जइ गिण्हइ वयलोवो, अहव न गिण्हइ सरीरबुच्छेओ । पासत्थसंगमोऽविय, वयलोवो तो वरमसंगो ॥२२२।। आलावो संवासो, वीसंभो संथवो पसंगो अ । हीणायारेहि सम, सव्वजिणिंदेहिं पडिकुट्ठो ॥ २२३ ॥ अन्नुन्नजंपिएहिं हसिउद्धसिएहिं खिप्पमाणो अ । पासत्थमज्ज्ञयारे, बलाऽवि जइ बाउलीहोइ ॥ २२४ ॥ लोएऽवि कुसंसग्गीपियं जणं दुनियच्छमइबसणं । निंदइ निरुज्जमं पियकुसीलजणमेव साहुजणो ॥ २२५ ॥ निचं संकिय भीओ गम्मो सव्वस्स खलियचारित्तो। साहुजणस्स अवमओ, मओऽवि पुण दुग्गइं जाइ ॥ २२६ ॥ गिरिसुअपुप्फसुआणं, सुविहिय ! आहरणकारणविहन्नु । वज्जेज्ज सीलविगले उज्जुयसीले हविज्ज जई ॥ २२७ ॥ ओसन्नचरणकरणं, जइणो बंदंति कारणं पप्प । जे. सुविइयपरमत्था, ते वंदंते निवारंति ॥२२८ ॥ सुविहिय वंदावतो, नासेई अप्पयं तु सुपहाओ । दुविहपहविप्पमुक्को, कहमप्प न याणई मूढो ॥ २२९ ॥ 卐 वंदइ उभओ कालंपि चेइयाइं थइथुई (थवत्थुई) परमा । जिणवरपडिमाघरधूवपुप्फगंधच्चणुज्जुत्तो ॥ २३० ॥ सुविणिच्छियएगमई, धम्मम्मि अनन्नदेवओ अ पुणो । न य कुसमए स रज्जइ, पुवावरबाहियत्थेसु ॥२३१॥ दठूण कुलिंगीणं, तसथावरभूयमद्दणं विविहं। धम्माओ न चालिज्जइ देवेहिं सइंदएहिंपि ॥ २३२ ॥ वंदइ
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