Book Title: Shrutgyan Amidhara
Author(s): Kshamabhadrasuri
Publisher: Shrutgyan Amidhara Gyanmandiram

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Page 194
________________ १७५ अप्पुव्वं पिव मन्नई, तहवि य जीवो मणे सुक्खं ॥२०२॥ जाणइ अ जहा भोगिढिसंपया सव्वमेव धम्मफलं । तहवि दढमूढहियो, पावे कम्मे जणो रमई ।। २०३ ॥ जाणिजइ चिंतिजइ, जम्मजरामरणसंभवं दुक्खं । न य विसएसु विरजई, अहो सुबद्धो कवडगंठी । २०४ ।। जाणइ य जह मरिजइ, अमरंतंपि हु जरा विणासेई । न य उव्विग्गो लोओ, अहो रहस्सं सुनिम्मायं । २०५ ॥ दुपयं चउप्पयं बहुपयं च अपयं समिद्धमहणं वा । अणवकएऽवि कयंतो, हरइ हयासो अपरितंतो ॥ २८६ ॥ न य नजइ सो दियहो, मरियव्वं चाऽवसेण सव्वेण । आसापासपरद्धो, न करेइ य जं हिय बोझो (बोद्दो) ॥ २०७ ॥ संझरागजलबुब्बुओवमे, जीवीए अ जलबिंदुचंचले । जुव्वणे य नइवेगसंनिभे, पाव जीव ! किमयं न बुज्झसि ? ॥ २०८ ॥ जं जं नजइ असुई, लज्जिज्जइ कुच्छणिज्जमेयंति । तं तं मग्गइ अंगं, नवरमणंगुत्थ पडिकलो ॥ २०९ ॥ सव्वगहाणं पभवो, महागहो सव्वदोसपायट्टी । कामग्गहो दुरप्पा, जेणभिभूयं जगं सव्वं ॥ ११० ॥ जो सेवइ किं लहइ, थामं हारेइ दुव्बलो होइ । पावेइ वेमणस्सं, दुक्खाणि अ अत्तदोसेणं ॥ २११ ॥ जह कच्छुल्लो कच्छं, कंडुयमाणो दुहं मुणइ सुक्खं । मोहाउरा मणुस्सा, तह कामदुहं सुहं बिंति ॥ २१२ ॥ विसयविसं हालहलं, विसयविसं उक्कडं पियंताणं । विसयविसाइन्नंपिव, विसयविसविसूइया होई ॥ २१३ ॥ एवं तु पंचहिं आसवेहिं रयमायणित्तु अणुसमयं । चउगइदुहपेरंतं, अणुपरियटुंति संसारे ॥२१४॥ सव्वगईपक्खंदे, काहंति अणंतए अकयपुण्णा । जे य न सुणंति धम्म, सोऊण य जे पमायति ।। २१५ ॥ अणुसिट्ठा य बहुविहं, मिच्छहिट्ठी य जे नरा अहमा । बद्धनिकाइयकम्मा, सुगंति धम्मं न य करंति ॥ २१६ ॥ पंचेव उज्झिऊणं, पंचेव य रक्खिऊण भावेणं ।

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