Book Title: Shrutgyan Amidhara
Author(s): Kshamabhadrasuri
Publisher: Shrutgyan Amidhara Gyanmandiram

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Page 193
________________ १७४ बंदिय पूइअ, सक्कारिय पणमिओ महग्यविओ । तं तह करेइ जीवो, पाडेइ जहप्पणो ठाणं ॥ १८७ ॥ सीलव्वयाइं जो बहुफलाइँ हंतूण सुक्खमहिलसइ । धिइदुब्बलो तवस्सी, कोडीए कागिणिं किणई ॥ १८८ ॥ जीवो जहामणसियं, हियइच्छियपथिएहि सुक्खेहिं । तोसेऊण न तीरई, जावजीवेण सव्वेण ॥ १८९ ॥ सुमिणंतराणुभूयं, सुक्खं समइच्छियं जहा नत्थि । एवमिमंपि अईयं, सुक्खं सुमिणोवमं होई ॥ १९० ॥ पुरनिद्धमणे जक्खो, महुरामंगू तहेव सुयनिहसो । बोहेई सुविहियजणं, विसूरइ बहुं च हियएण ॥ १९१ ॥ निग्गंतूण घराओ, न को धम्मो मए जिणक्खाओ । इढिरससायगुरुयत्तणेण न य चेइओ अप्पा ॥ १९२ ॥ ओसन्नविहारेणं, हा जह झीणम्मि आउए सव्वे। किं काहामि अहन्नो संपइ सोयामि अप्पाणं ॥ १९३॥ हा जीव ! पाव भमिहिसि, जाईजोणीसयाई बहुयाई । भवसयसहस्सदुलहंपि जिणमयं एरिसं लड़े ॥ १९४ ॥ पावो पमायवसओ, जीवो संसारकजमुज्जुत्तो । दुक्खेहिं न निविण्णो सुक्खेहिं न चेव परितुट्ठो ॥ १९५ ॥ परितप्पिएण तणुओ, साहारो जइ घणं न उज्जमइ । सेणियराया तं तह, परितप्पंतो गओ नरयं ॥ १९६ ।। जीवेण जाणि विसज्जियाणि जाईसएसु देहाणि । थोवेहिं तओ सयलंपि तिहुयणं हुज्ज पडिहत्थं ॥ १९७ ॥ नहदंतमंसकेसट्ठिएसु जीवेण विप्पमुक्केसु । तेसुवि हविज्ज कइलासमेरुगिरिसन्निभा कूडा । १९८ ॥ हिमवंतमलयमंदरदीवोदहिधरणिसरिसरासीओ। अहिअयरो आहारो, छुहिएणाहारिओ होज्जा ॥ १९९ ॥ ज णेण जलं पीयं, घम्मायवजगडिएण तंपि इहं । सध्वेवि अगडतलायनईसमुहेसु नवि हुन्जा ॥ २०० ॥ पीयं थणयच्छीरं सागरसलिलाओ होज्ज बहुअयरं । संसारम्मि अणंते, माऊणं अन्नमनाणं ॥ २८१ ॥ पत्ता य कामभोगा, कालमणंतं इहं सउवभोगा ।

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