Book Title: Shrutgyan Amidhara
Author(s): Kshamabhadrasuri
Publisher: Shrutgyan Amidhara Gyanmandiram
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पडिपुच्छइ पज्जुवासई साहुणो सययमेव । पढइ सुणइ गुणेइ अ, जणस्स धम्म परिकहेइ ॥ २३३ ॥ दृढसीलव्वयनियमो, पोसहआवस्सएसु अक्खलिओ । महुमज्जमंसपंचविहबहुवीयफलेसु पडिक्कतो ॥ २३४ ॥ नाहम्मकम्मजीवी, पञ्चक्खाणे अभिक्खमुज्जुत्तो । सव्वं परिमाणकडं, अवरज्ज्ञइ तंपि संकेतो ॥ २३५ ॥ निक्खमणनाणनिव्वाणजम्मभूमीउ वंदइ जिणाणं । न य वसइ साहुजणविरहियम्मि देसे बहुगुणेऽवि ॥ २३६ ॥ परतित्थियाण पणमण, उम्भावण थुणण भत्तिरागं च । सकारं सम्माणं, दाणं विणयं च वज्जेइ ॥ २३७ ॥ पढमं जईण दाऊण, अप्पणा पणमिऊण पारेइ । असई अ सुविहिआणं, भुंजई कयदिसालोओ ॥ २३८ ॥ साहूण कप्पणिज्जं, जं नवि दिन्न कहिंपि किंचि तहिं । धीरा जहुत्तकारी, सुसावगा तं न भंजंति ॥ २३९ ॥ वसहीसयणासणभत्तपाणभेसजवत्थपत्ताइ । जइऽवि न पज्जत्तधणो थोवाऽविहु थोवयं देई ॥ २४० ॥ संवच्छरचाउम्मासिएसु अट्ठाहियासु अ तिहीसु। सव्वायरेण लग्गइ जिणवरपूयातवगुणेसु ॥ २४१ ॥ साहूण चेइयाण य पडिणीयं तह अवण्णवायं च । जिणपवयणस्स अहिरं सव्वत्थामेण वारेई ॥ २४२ ॥ विरया पाणिवहाओ, विरया निच्च च अलियवयणाओ । विरया चोरिकाओ, विरया परदारगमणाओ ॥ २४३ ॥ विरया परिग्गहाओ, अपरिमिआओ अणंततण्हाओ । बहुदोससंकुलाओ नरयगइगमणपंथाओ ॥ २४४ ॥ मुक्का दुज्जणमित्ती, गहिया गुरुवयणसाहुपडिवत्ती । मुक्को परपरिवाओ गहिओ जिणदेसिओ धम्मो ॥२४५।। तवनियमसीलकलिया, सुसावगा जे हवंति इह सुगुणा, तेसिं न दुल्लहाई, निव्वाणविमाणसुक्खाई 5 ॥ २४६ ॥ सीइज्ज कयावि
गुरू, तंपि सुसीसा सुनिउणमहुरेहिं । मग्गे ठवंति पुणरवि, जह है सेलगपंथगो नायं ॥ २४७ ॥ दस दस दिवसे दिवसे, धम्मे
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