Book Title: Shrutgyan Amidhara
Author(s): Kshamabhadrasuri
Publisher: Shrutgyan Amidhara Gyanmandiram
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१७३
साहेइ ॥ १७१ ॥ सुहिओ न चयइ भोए, चयइ जहा दुक्खिओत्ति अलियमिणं । चिक्कणकम्मोलित्तो न इमो न इमो परिचयई ॥ १७२ ।। जह चयइ चक्कवट्टी, पवित्थरं तत्तियं मुहुत्तेणं । न चयइ तहा अहन्नो, दुब्बुद्धी खप्परं दमओ ॥ १७३ ॥ देहो पिवीलियाहिं, चिलाइपुत्तस्स चालणी व्व कओ। तनुओवि मणपओसो, न चालिओ तेण ताणुवरिं ॥ १७४ ॥ पाणच्चएऽवि पावं, पिवीलियाण्डवि जे न इच्छंति । ते कह जई अपावा, पावाइँ करंति अन्नस्स ? || १७५ ॥ जिणपहअपंडियाणं, पाणहराणंऽपि पहरमाणाणं । न करंति य पाबाई, पावस्स फलं वियाणंता ॥ १७६ ॥ वहमारणअभक्खाणदाणपरधनविलोवणाईणं । सव्वजहन्नो उदओ, दसगुणिओ इक्कसि कयाणं ॥ १७७ ॥ तिव्वयरे उ पओसे, सयगुणिओ सयसहस्सकोडिगुणो । कोडाकोडिगुणो वा, हुज्ज विवागो बहुतरो वा ॥ १७८ ॥ केइत्थ करतालंबणं इमं तिहुयणस्स अच्छेरं । जह नियमा खवियंगी, मरुदेवी भगवई सिद्धा ।। १७९ ॥ किंपि कहिंपि कयाई, एगे लद्धीहि केहिऽवि निभेहिं । पत्तेअबुद्धलाभा, हवंति अच्छेरयम्भूया ॥१८०॥ निहिसंपत्तमहन्नो, पत्थितो जह जणो निरुत्तप्पो । इह नासइ तह पत्तेअबुद्धलद्धिं(च्छि)पडिच्छं तो ॥ १८१ । सोऊण गई सुकुमालिए तह ससगभसगभइणीए । ताव न वीससियव्वं, सेयठ्ठी धम्मिओ जाव ॥ १८२ ।। खरकरहतुरयवसहा, मत्तगइंदाऽवि नाम दम्मति । इक्को नवरि न दम्मइ, निरंकुसो अप्पणो अप्पा ।। १८३ ॥ वरं मे अप्पा दंतो, संजमेण तवेण य । माऽहं परेहिं दम्मंतो, बंधणेहिं वहेहि अ ॥ १८४ ॥ अप्पा चेव दमेयव्वो, अप्पा हु खलु दुद्दमो । अप्पा दंतो सुही होई, अस्सिं लोए परत्थ य ॥ १८५ ॥ निच्चं दोससहगओ जीवो अविरहियमसुहपरिणामो । नवरं दिन्ने पसरे, तो देइ पमायमयरेसु ॥ १८६ ॥ अच्चिय
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