Book Title: Shrutgyan Amidhara
Author(s): Kshamabhadrasuri
Publisher: Shrutgyan Amidhara Gyanmandiram

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Page 190
________________ १७२ पिया धरावेइ । तहवि य खंदकुमारो, न बंधुपासेहिं पडिबद्धो ॥ १४१ ॥ गुरु गुरुतरो अ अइगुरु, पियमाइअवच्च पियजणसि हो । चितिज्जमाणगुविलो, चत्तो अइधम्मतिसिएहिं ॥ १४२ ॥ अमुणियपरमत्थाणं. बंधुजणसिणेहवइयरो होइ । अवगयसंसारसहावनिच्छ्याणं समं हिययं ॥ १४३ ॥ माया पिया य भाया, भज्जा पुत्ता सुही य नियगा य । इह चेव बहुविहाई, करंति भयवेमणस्साई || १४४ || माया नियगमविगप्पियम्मि अत्थे अपूरमाणम्मि । पुत्तस्स कुणइ वसणं, चुलणी जह बंभदत्तस्स || १४५|| सांगोवंगविगत्तणाओ जगडणविहेडणाओ अ । कासी य रज्जतिसिओ पुत्ताण पिया कणयकेऊ ।। १४६ ।। विसय सुहरागवसओ, घोरो भायाऽवि भारं हणइ । आहाविओ वहत्थं, जह बाहुबलिस भरवई ॥ १४७ ॥ भज्जाऽवि इंदिय विगारदोसनडिया करेइ पपात्रं । जह सो पसिराया सूरियकंताई तह वहिओ ।। १४८ || सासयसुक्खतरस्सी, नियअंगसमुब्भवेण पित्त । जह सो सेणियराया, काणियरण्णा खयं नीओ ॥ १४९ ॥ लुद्धा सकज्जतुरिभा, सुहिणोऽवि विसंवयंति कयकज्जा । जह चंदगुत्तगुरुणा, पव्त्रयओ घाइओ राया ॥ १५० ॥ निययाऽवि निययकज्जे, विसंवयंतम्मि हुति खरफरुसा। जह रामसुभूमकओ, बंभक्खत्तस्स आसि खओ ।। १५१ ।। कुलघरनिययसुहेसु अ, सयणे अ जणे अनिच्च मुणिवसहा । विहरंति अणिस्साए, जह अज्जमहागिरी भयवं ।। १५२ ।। रूवेण जुव्वणेण य कन्नाहि सुहेहिं वरसिरीए य । न य लुब्भंति सुविहिया, निदरिसणं जंबुनामुत्ति ॥ १५३ ॥ उत्तमकुलप्पसूया, रायकुलवडिंसगाऽवि मुणिवसहा | बहुजणजइसंघट्ट, मेहकुमारुव्व विसति ॥ १५४ ॥ अवरुप्परसंवाह, सुक्खं तुच्छं सरीरपीडा य । सारण वारण चोयण, गुरुजणभायत्तया य गणे ॥ १५५ ॥ इक्कस्स कओ धम्मो ?, सच्छंद गईमई

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