Book Title: Shrutgyan Amidhara
Author(s): Kshamabhadrasuri
Publisher: Shrutgyan Amidhara Gyanmandiram

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Page 187
________________ १६८ कारणेण तहिं ।। ९५ ।। जो गिण्हइ गुरुवयणं, भण्णतं भावओ विसुद्धमणो । ओसहमिव पिज्जंतं, तं तस्स सुहावहं होइ || ९६ || अणुवत्तगा विणीआ, बहुक्खमा निच्चभत्तिमता य । गुरुकुलवासी अमुई, धन्ना सीसा इह सुशीला ॥ ९७ ॥ जीवंतस्स इह जसो, कित्ती य मयस्स परभवे धम्मो । सुगुणस्स य, निगुणस्स य अजसाऽकित्ती अहम्मो य ॥ ९८ ॥ वुड्ढावासेऽवि ठियं, अहव गिलाणं गुरुं परिभवंति । दत्तव्य धम्मवीमंसएण दुस्सिक्खियं तंपि ||९९|| आयरियभत्तिरागो, कस्स सुनक्खत्तमरिसी सरिसो । अवि जीविअं वर्षासिभं, न चेव गुरुपरिभवो सहिओ ॥ १०० ॥ पुण्णेहिं चोइआ पुरक्खडेहिं सिरिभायणं भविअसत्ता । गुरुमागमेसिभद्दा, देवयमित्र पज्जुवासंति ॥ १०१ ॥ बहुसुक्खसय सहस्सान दायगा मोअगा दुइसयाणं । आयरिआ फुडमेअं, के सिपएसीअ (व) ते हेऊ ॥ १०२ || नरयगइगमणपsिहत्थए कए तह परसिणा रण्णा । अमर विमाणं पत्तं तं आयरिअप्पभावेणं ॥ १०३ || धम्ममइएहिं भइसुंदरेहिं कारणगुणोवणीएहिं । पल्हायंतो य मणं, सीसं चोइ आयरिओ ॥ १०४ ॥ जीअं काऊण पणं, तुरमिणिदत्तस्स कालिअज्जेणं । अविअ सरीरं चत्तं न य भणिअमहम्म संजुतं ॥ १०५ ॥ फुडपागडमकतो, जहद्विअं बोहिलाभमुवहणइ । जह भगवओ विसालो, जरमरणमहोअही असि ।। १०६ ।। कारुण्णरुण्णसिंगारभावभय जीविअंतकरणेहिं । साहू अविभ मरंति, न य निअनिअमं विराहंति ।। १०७ ।। अप्प हियमायरंतो अणुमोअंतो अ सुग्गई लहइ । रह्कारदाणअणुमोअगो मिगो जह य बलदेवो ॥ १०८ ॥ जं तं कयं पुरा पूरणेण अइदुकरं चिरं कालं । जइ तं दयावरो इह, करिंतु तो सफल हुतं ।। १०९ ।। कारणनीयावासी, सुठुयरं उज्जमेण जइयव्वं । जह ते संगमथेरा, सपा डिहेरा तथा आसी ॥ ११० ॥ एगंतनियावासी, घरसरणाईसु " -

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