Book Title: Shrutgyan Amidhara
Author(s): Kshamabhadrasuri
Publisher: Shrutgyan Amidhara Gyanmandiram

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Page 184
________________ १६५ आयासकिलेसभयविवागो अ । मरणं धम्मभंसो, अरई अत्थाउ सव्वाइं ॥ ५० ॥ दोससयमूलजालं, पुवरिसिविवज्जियं जई वंतं । अत्थं वहसि अणत्थं, कीस अणत्थं तवं चरसि ? ॥ ५१ ॥ वहबंधणमारणसेहणाओ काओ परिग्गहे नत्थि । तं जइ परिग्गहुच्चिय, जइधम्मो तो नणु पवंचो ॥ ५२ ॥ किं आसि नंदिसेणस्स कुलं जं हरिकुलस्स विउलस्स । आसी पियामहो सच्चरिएण वसुदेवनामुत्ति ॥ ५३ ॥ विज्जाहरीहिं सहरिसं, नरिंददुहियाहि अहमहंतीहिं । जं पत्थिज्जइ तइया, वसुदेवो तं तवस्स फलं ॥ ५४ ॥ सपरक्कमराउलवाइएण सीसे पलीविए निअए । गयसुकुमालेण खमा, तहा कया जह सिवं पत्तो ॥ ५५ ॥ रायकुलेसुऽवि जाया, भीया जरमरणगब्भवसहीणं । साहू सहति सव्वं, नीयाणऽवि पेसपेसाणं ॥ ५६ ॥ पणमंति य पुव्वयरं कुलया, न नमंति अकुलया पुरिसा। पणओ इह पुवि जइजणस्स जह चकवट्टिमुणी ।। ५७ ॥ जह चकवट्टिसाहू सामाइअसाहुणा निरुवयारं । भणिओ न चेव कुविओ, पणओ बहुअत्तणगुणेणं ॥५८|| ते धन्ना से साहू, तेसि नमो जे अकज्जपडिविरया । धीर वयमसिहारं, चरंति जह थूलिभद्दमुणी ॥ ५९ ॥ विसयासिपंजरंमिव, लोए असिपंजरम्मि तिक्खम्मि । सिंहा व पंजरगया, वसंति तवपंजरे साहू ॥ ६० ॥ जो कुणइ अप्पमाणं, गुरुवयणं न य लएइ उवएसं । सो पच्छा तह सोअइ, उवकोसघरे जह तवस्सी ॥ ६१ ॥ जिट्ठव्वयपव्वयभरसमुव्वहणववसिअस्स अच्चंतं । जुवइजणसंवइयरे, जइत्तणं उभयओ भट्ठ ॥ ६२ ॥ जइ ठाणी जइ मोणी, जइ मुंडी वक्कली तवस्सी वा । पत्थन्तो अ अबभं, बंभावि न रोयए मज्झं ।।६३॥ तो पढियं तो गुणियं, तो मुणियं तो अ चेइओ अप्पा । आवडियपेल्लियामंतिओऽवि जइ न कुणइ अकजं ॥६४॥ पागडियसव्वसल्लो, गुरुपागमूलम्मि लहइ साहु

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