Book Title: Shrutgyan Amidhara
Author(s): Kshamabhadrasuri
Publisher: Shrutgyan Amidhara Gyanmandiram

View full book text
Previous | Next

Page 182
________________ १६३ जणेऽवि पुरिसो जहिं नत्थि ।। १९ ॥ किं परजणबहुजाणावणाहिं वरमप्पसक्खियं सुकयं । इह भरहचक्कवट्टी, पसन्नचंदो य दिटुंता ॥ २० ॥ वेसोऽवि अपमाणो, असंजमपहेसु वट्टमाणस्स । किं परिअत्तिअवेसं, विसं न मारेइ खज्जतं ? ॥२१ ॥ धम्म रक्खइ वेसो, संकइ वेसेण दिक्खिओ म्हि अहं । उम्मग्गेण पडतं, रक्खइ राया जणवउव्व ॥ २२ ॥ अप्पा जाणइ अप्पा, जहडिओ अप्पसक्खिओ धम्मो । अप्पा करेइ तं तह, जह अप्पसुहावहं होइ ॥ २३ ॥ जं जं समयं जीवो, आविसइ जेण जेण भावेण । सो तम्मि तम्मि समये, सुहासुहं बंधए कम्म ॥ २४ ॥ धम्मो मएण हुँतो, तो नवि सीउण्हवायविज्झडिओ । संवच्छरम (रं अ) णसिओ, बाहुबली तह किलिस्संतो ॥२५॥ निगमइविगप्पिअचिंतिएण सच्छंदबुद्धिरइएणं । कत्तो पारत्तहिरं कीरइ गुरुअणुवएसेणं ? ॥ २६ ॥ थद्धो निरोवयारी, अविणीभो गविओ निरुवणामो । साहुजणस्स गरहिओ, जणेऽवि वयणिजयं लहइ ॥ २७ ॥ थोवेणवि सप्पुरिसा, सणंकुमारुव्व केइ बुझंति । देहे खणपरिहाणी, जं किंर देवेहिं से कहिया ॥ २८ ॥ जइ ता लवसत्तमसुरविमाणवासीवि परिवडंति सुरा। चिंतिज्जंतं सेसं, संसारे सासयं कयरं ? ॥ २९ ॥ कह तं भण्णइ सुक्खं ? मुचिरेणवि जस्स दुक्खमल्लिअइ । जं च मरणावसाणे, भवसंसाराणुबंधिं च ॥ ३० ॥ उवएससहस्सेहिवि, बोहिज्जतो न बुज्झइ कोई । जह बंभदत्तराया, उदायिनिवमारओ चेव ॥ ३१ ॥ गयकण्णचंचलाए, अपरिश्चत्ताऍ रायलच्छीए । जीवा सकम्मकलिमलभरियभरा तो पडंति अहे ॥ ३२ ॥ वुत्तूणवि जीवाणं, सुदुक्कराइंति पावचरिआई । भयवं जा सा सा सा, पच्चाएसो हु इणमो ते ॥ ३३ ।। पडिवजिऊण दोसे, निभए सम्मं च पायवडिआए। तो किर मिगावईए, उप्पन्न केवलं नाणं ॥ ३४ ॥ किं सका

Loading...

Page Navigation
1 ... 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234