Book Title: Shrutgyan Amidhara
Author(s): Kshamabhadrasuri
Publisher: Shrutgyan Amidhara Gyanmandiram
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१६२
I
जइ ता तिलोअनाहो, बिसहर बहुआइँ असरिसजणस्स । इअ जीअंतकराई, एस खमा सव्वसाहूणं ॥ ४ ॥ न चइज्जइ चालेडं, महइमहावद्धमाणजिणचंदो । उवसग्गसहस्सेहिवि, मेरू जह वायगुंजाहिं ॥ ५ ॥ भदो विणीअविणओ, पढमगणहरो समत्तसुअनाणी । जाणतोऽवि तमत्थं, विम्हिअहिअओ सुणइ सव्वं ॥ ६ ॥ जं आणवेइ राया, पगईओ तं सिरेण इच्छंति । इअ गुरुजणमुहभणिअं, कयंजलिउडेहिं सोअव्वं ॥ ७ ॥ जह सुरगणाण इंदो, गहगणतारागणाण जह चंदो । जह य पयाण नरिंदो, गणस्सवि गुरू तहाणंदो ॥ ८ ॥ बालुत्ति महीपालो, न पया परिभवइ एस गुरु उवमा । जं वा पुरओ काउं, विहरंति मुणी तहा सोवि ॥ ९ ॥ पडिवो तेयस्सी, जुगप्पहाणागमो महुरवको गंभीरो धीमंतो, उबएसपरो अ आयरिओ ॥ १० ॥ अपरिस्सावी सोमो, संगहसीलो अभिग्गहमई य । अविकत्थणो अचवलो, पसंतहियओ गुरू होइ ॥ ११ ॥ कइयावि जिणवरिंदा, पत्ता अयरामरं पहुं दाउ | आयरिएहिं पवयणं, धारिज्जइ संपयं सयलं ॥ १२ ॥ अणुगम्मए भगवई, रायसुअज्जासह स्सविंदेहं । तहवि न करेइ माणं, परियच्छइ तं तहा नूणं ॥ १३ ॥ दिदिक्खिअस्स दमगस्स, अभिमुहा अज्ज - चंदणा अज्जा । नेच्छइ आसणगहणं, सो विणओ सव्वअज्जाणं ॥ १४ ॥ वरिससयदिक्खिआए, अज्जाए अज्जदिक्खिओ साहू | अभिगमणवंदणनमंसणेण विणण सो पुज्जो ॥ १५ ॥ धम्मो पुरिसप्पभवो पुरिसवरदेसिओ, पुरिसजिट्ठो । लोएवि पहू पुरिसो, किं पुण लोगुत्तमे धम्मे ? || १६ || संवाहणस्स रण्णो, तइया वाणारसीऍ नयरीए । कन्नासहस्समहिअं, आसी किर रुववंतीणं ॥ १७ ॥ तहविय सा रायसिरी, उल्लुट्टांती न ताइया ताहिं । उयरट्ठिएण इक्केण, ताइया अंगवीरेण ॥ १८ ॥ महिलाण सुबहुआणवि, मज्झाओ इह समत्तघरसारो। रायपुरिसेहिं निज्जइ,
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