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जणेऽवि पुरिसो जहिं नत्थि ।। १९ ॥ किं परजणबहुजाणावणाहिं वरमप्पसक्खियं सुकयं । इह भरहचक्कवट्टी, पसन्नचंदो य दिटुंता ॥ २० ॥ वेसोऽवि अपमाणो, असंजमपहेसु वट्टमाणस्स । किं परिअत्तिअवेसं, विसं न मारेइ खज्जतं ? ॥२१ ॥ धम्म रक्खइ वेसो, संकइ वेसेण दिक्खिओ म्हि अहं । उम्मग्गेण पडतं, रक्खइ राया जणवउव्व ॥ २२ ॥ अप्पा जाणइ अप्पा, जहडिओ अप्पसक्खिओ धम्मो । अप्पा करेइ तं तह, जह अप्पसुहावहं होइ ॥ २३ ॥ जं जं समयं जीवो, आविसइ जेण जेण भावेण । सो तम्मि तम्मि समये, सुहासुहं बंधए कम्म ॥ २४ ॥ धम्मो मएण हुँतो, तो नवि सीउण्हवायविज्झडिओ । संवच्छरम (रं अ) णसिओ, बाहुबली तह किलिस्संतो ॥२५॥ निगमइविगप्पिअचिंतिएण सच्छंदबुद्धिरइएणं । कत्तो पारत्तहिरं कीरइ गुरुअणुवएसेणं ? ॥ २६ ॥ थद्धो निरोवयारी, अविणीभो गविओ निरुवणामो । साहुजणस्स गरहिओ, जणेऽवि वयणिजयं लहइ ॥ २७ ॥ थोवेणवि सप्पुरिसा, सणंकुमारुव्व केइ बुझंति । देहे खणपरिहाणी, जं किंर देवेहिं से कहिया ॥ २८ ॥ जइ ता लवसत्तमसुरविमाणवासीवि परिवडंति सुरा। चिंतिज्जंतं सेसं, संसारे सासयं कयरं ? ॥ २९ ॥ कह तं भण्णइ सुक्खं ? मुचिरेणवि जस्स दुक्खमल्लिअइ । जं च मरणावसाणे, भवसंसाराणुबंधिं च ॥ ३० ॥ उवएससहस्सेहिवि, बोहिज्जतो न बुज्झइ कोई । जह बंभदत्तराया, उदायिनिवमारओ चेव ॥ ३१ ॥ गयकण्णचंचलाए, अपरिश्चत्ताऍ रायलच्छीए । जीवा सकम्मकलिमलभरियभरा तो पडंति अहे ॥ ३२ ॥ वुत्तूणवि जीवाणं, सुदुक्कराइंति पावचरिआई । भयवं जा सा सा सा, पच्चाएसो हु इणमो ते ॥ ३३ ।। पडिवजिऊण दोसे, निभए सम्मं च पायवडिआए। तो किर मिगावईए, उप्पन्न केवलं नाणं ॥ ३४ ॥ किं सका