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वुत्तुं जे सरागधम्मम्मि कोइ अकसाओ ? । जो पुण धरिज घणिभं दुव्वयणुज्जालिए स मुणी ।। ३५ ।। कडुअकसायतरूणं, पुफ्फं च फलं च दोऽवि विरसाई । पुप्फेण झाइ कुविओ, फलेण पाव समायरइ || ३६ || संतेऽवि कोऽवि उज्झइ, asa असंतेऽवि अहिलसइ भोए । चयइ परपच्चएणऽवि, पभवो दट्ठूण जह जंबुं ॥ ३७ ॥ दीसंति परमघोरावि पवरधम्मप्पभावपडिबुद्धा । जह सो चिलाइपुत्तो, पडिबुद्धो सुंसुमाणा ॥ ३८ ॥ पुष्फियफलिए तह पिउघरम्मि तहा छुहा समणुबद्धा । ढंढेण तहा विसढा, विसढा जह सफलया जाया ॥ ३९ ॥ आहारेसु सुहेसु अ, रम्माव सहेसु काणणेसुं च । साहूण नाहिगारो अहिगारो धम्मक - ज्जे ॥ ४० ॥ साहू कांतार महाभए अवि जणवएव मुइअम्मि | अवि ते सरीरपीडं, सहंती न लहं (यं) तिय विरुद्ध ं ॥ ४१ ॥ जंतेहि पीलीयावि हु, खंद्गसीसा न चैव परिकुविया | विइयपरमत्थसारा, खमंति जे पंडिआ हुंति ॥ ४२ ॥ णिवयणसुइसकण्णा, अवगयसंसारघोरपेयाला । बालाण खमंति जई, जइति किं इत्थ अच्छेरं ? ॥ ४३ ॥ न कुलं इत्थ पहाणं, हरिएसबलस्य किं कुलं आसी ? । आकंपिया तवेणं, सुरावि जं पज्जुवासंति ॥ ४४ ॥ देवो नेरइउत्ति य, कीड पयंगुत्ति माणुसो aar | रूसी अ विरूवो, सुहभागी दुक्खभागी अ ।। ४५ ।।
उत्तिय दमगुत्तिय, एस सपागुत्ति एस वेयविऊ । सामी दासो पुज्जो, खलत्ति अघणो धणवइति ॥ ४६ ॥ नवि इथ कोऽवि नियमो, सकम्मविणिविट्ठसरिसकयजिट्ठो । अन्नुन्नरूववेसो, नडुव्व परियत्तए जीवो ॥ ४७ ॥ कोडीसएहिं धणसंचयस्स गुणसुभरियाऍ कन्नाए । नवि लुद्धो वयर रिसी, अलोभया एस साहूणं ॥ ४८ ॥ अंतेउरपुर बलवाहणेहिं वरसिरिघ रेहिं मुणिवसहा । कामेहि बहुविहेहि य, छंदिज्जंतावि नेच्छति ॥ ९४ ॥ छेओ भेओ वसणं,