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सर्वगुण सम्पन्न प्रभु हजारों आत्माओं को मंगल एवं श्रेयस्कारी उपदेश, सतत रुप से स्वयं की ३५ गुण सम्पन्न वाणी में प्रसारित करते हैं ।
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• ऐसे अरिहंत प्रभु की आत्मा १८ दोषों से रहित है । परम पवित्र एवं परम उपकारी
है, वीतराग है, प्रशम रस से पूर्ण है, पूर्णानन्दमय है ।
• प्रभु की मुक्ति मार्ग बताने की शैली अनोखी होती है । तत्व प्रतिपादन, हमेशा स्याद्वाद-अनेकांतवाद की मुद्रा से अंकित है । मन, वचन एवं काया के निग्रह में प्रभु अजोड़ है । सूर्य से अधिक तेजस्वी तथा चन्द्र से अधिक शीतल है । सागर से भी अधिक गंभीर है तो मेरु की तरह अडिग और अचल है। अनुपम रुप के स्वामी है । अरिहंत भगवान परम उपास्य है एवं इसी कारण नितान्त स्तुति के पात्र है
जैनम् जयति शासनम्
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