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श्रमण महावीर जलाशय प्रसन्न हैं। प्रफुल्ल हैं भूमि और आकाश। धान्य की समृद्धि से समूचा जनपद हर्ष-विभोर हो उठा है। इस प्रसन्न वातावरण में चैत्र शुक्ला त्रयोदशी (३० मार्च, ईस्वी पूर्व ५६६) की मध्यरात्रि को एक शिशु ने जन्म लिया।
जनपद का नाम विदेह । नगर का नाम क्षत्रियकुण्ड । पिता का नाम सिद्धार्थ । माता का नाम त्रिशला । शिशु अभी अनाम।
वह दासप्रथा का युग था। प्रियंवदा दासी ने सिद्धार्थ को पुत्र-जन्म की सूचना दी। सिद्धार्थ यह सूचना पा हर्ष-विभोर हो उठे। उन्होंने प्रियंवदा को प्रीतिदान दिया और सदा के लिए दासी-कर्म से मुक्त कर दिया । दास-प्रथा के उन्मूलन में यह था शिशु का पहला अभियान ।
सिद्धार्थ ने नगर-रक्षक को बुलाकर कहा, 'देवानुप्रिय ! पुत्ररत्न का जन्म हुआ है। उसकी खुशी में उत्सव का आयोजन करो।'
नगर-रक्षक महाराज सिद्धार्थ की आज्ञा को शिरोधार्य कर चला गया।
आज बन्दीगृह खाली हो रहे हैं। बन्दी अपने-अपने घरों को लौट रहे हैं। ऐसा लग रहा है मानो स्वतन्त्रता के सेनानी ने जन्म लेते ही पहला प्रहार उन गृहों पर किया है, जहां बुराई को नहीं किन्तु मनुष्य को बन्दी बनाया जाता है।
आज बाजारों में भीड़ उमड़ रही है। अनाज, किराना, घी और तेल-सब सस्ते भावों में बिक रहे हैं। ऐसा लग रहा है मानो असंग्रह के पुरस्कर्ता ने संग्रह को चुनौती दे डाली है। __ आज नगर के राजपथों, तिराहों, चौराहों और छोटे-बड़े सभी पथों पर जल छिड़का जा रहा है । ऐसा लग रहा है मानो शान्ति का पुरोधा भूमि का ताप हरण कर मानव-संताप के हरण की सूचना दे रहा है। ___ आज अट्टालिका के हर शिखर पर ध्वजा और पताकाएं फहरा रही हैं। ऐसा लग रहा है मानो जीवन-संग्राम में प्राप्त होने वाली सफलता विजय का उल्लास मना रही है।
आज नगर के कण-कण से सुगन्ध फूट रही है। सारा नगर गंधगुटिका जैसा प्रतीत हो रहा है। मानो वह बता रहा है कि संयम के संवाहक की दिग्दिगन्त में ऐसी ही सुगन्ध फूटेगी।
नगरवासियों के मन में कुतूहल है। स्थान-स्थान पर एक प्रश्न पूछा जा रहा है -~आज यह क्या हो रहा है ? क्यों हो रहा है ? क्या कोई नई उपलब्धि हुई है ?
इन जिज्ञासाओं के उभरते स्वरों के बीच राज्याधिकारियों ने समूचे नगर में यह सूचना प्रसारित की- 'महाराज सिद्धार्थ के आज पुत्र-रत्न का जन्म हुआ है।' इस संवाद के साथ समूचा नगर हर्षोत्फुल्ल हो गया।
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१. कल्पसूत्र, सून ६६-१००; कल्पसूत्र टिप्पनक, पृ० १२-१३ ।