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जीवनवृत्त : कुछ चित्र-कुछ रेखाएं ___एफ रत्न-पुंज-दिगन्त को छूती हुई रश्मियों से आकीर्ण, उन्नत और रमणीय।
एक अग्निपुंज-गगनस्पर्शी शिखा और ज्वाला से संकुल, निधूम और घृत से अभिषिक्त ।
त्रिशला जागी। उसका मन उल्लास से भर गया। उसे अपने स्वप्नों पर आश्चर्य हो रहा था। आज तक उसने इतने महत्त्वपूर्ण स्वप्न कभी नहीं देखे थे। वह महाराज सिद्धार्थ के पास गयी। उन्हें स्वप्नों की बात सुनायी । सिद्धार्थ हर्ष और विस्मय से आरक्त हो गया।
सिद्धार्थ ने स्वप्न-पाठकों को आमंत्रित किया। उन्होंने स्वप्नों का अध्ययन कर कहा, 'महाराज ! देवी के पुत्र-रत्न उत्पन्न होगा। ये स्वप्न उसके धर्म-चक्रवर्ती होने की सूचना दे रहे हैं।' महाराज ने प्रीतिदान दे स्वप्न-पाठकों को विदा किया।
जन्म
सब दिशाएं सौम्य और आलोक से पूर्ण हैं। वासन्ती पवन मंद-मंद गति से प्रवाहित हो रहा है। पुष्पित उपवन वसन्त के अस्तित्व की उद्घोषणा कर रहे हैं।
१. इस स्वप्न-शृंखला में स्वप्न-दर्शन की दो परम्पराओं द्वारा सम्मत स्वप्न शृखलित हैं : दिगम्वर परम्परा
श्वेताम्बर परम्परा १ गज
१. गज २. वृपम
२. वृषभ ३. सिंह
३. सिंह ४. लक्ष्मी
४. श्री अभिषेक ५. मात्यद्विक
५. दाम (माला) ६. पाशि
६. शशि ७. सूर्य
७. दिनकर ८. कुम्भतिक
८. कुम्भ ६. अपय गल
६. जय (ध्वजा) १०. सागर
१०. सागर ११. सरोवर
११. पद्मसर १२. सिंहासन
१२. विमान १३. ऐव-विमान
१३. रत्न-उच्चय १४. नाग विमान
१४. मिसि (अग्नि) १५. रत्न-रागि
१६. निर्धम अग्नि २. कल्पसूत, भूत ६४.७८॥