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भगवान् को जंभियगाँव के पास ऋजुपालिका अथवा ऋजुवालुका नदी के उत्तर तट पर केवलज्ञान हुआ था और वहाँ से आप रातभर चल कर मध्यमापावा पहुँचे थे, जो जंभिया से बारह योजन अर्थात् लगभग अड़तालीस कोस दूर थी ।
आजकल भगवान् का केवलज्ञानोत्पत्ति--स्थान हजारीबाग से पूर्व में पार्श्वनाथ पहाड़ से दक्षिण-पूर्व में दामोदर नदी के किनारे माना जाता है, परन्तु निश्चित रूप से यही स्थान केवल-कल्याणक भूमि है, यह कहना साहस मात्र होगा; क्योंकि दामोदर नदी से पावामध्यमा की दूरी पूर्वोक्त दूरी से बहुत अधिक है ।
कुछ विद्वान् आजी नदी को ऋजुबालुका का अपभ्रंश मानकर आजी के निकट स्थित जमगाँव को जंभियगाँव मानते हैं और वहाँ से मध्यमा को लगभग बारह योजन दूर होना बताते हैं, परन्तु यह बात भी युक्तिसंगत नहीं है । क्योंकि पहले तो 'आजी' यह 'ऋजुबालुका' का अपभ्रंश नहीं, पर इसी नाम की प्राचीन नदी है । जैन सूत्रों में इसका 'आजी' और 'आदी', इन नामों से उल्लेख मिलता है । दूसरा आजी के तट से मध्यमापावा की दूरी अड़तालीस कोस की नहीं, पर इससे बहुत अधिक है । इस दशा में भगवान् के केवलकल्याणक का असली स्थान निश्चित करना कठिन है ।
भगवान् महावीर ने बारहवाँ वर्षाचातुर्मास्य चम्पा में व्यतीत करके चम्पा से विहार कर अँभियगाँव और वही से छम्माणि होकर मध्यमा नगरी पहुँचे थे और मध्यमा से फिर आप जंभियगाँव पधारे थे । इस प्रकार जंभियगाँव, जहाँ पर भगवान् को केवलज्ञान हुआ था, चम्पा और मध्यमापावा के बीच में कहीं होगा । आधुनिक पावापुरी, जो महावीर की निर्वाण भूमि मानी जाती है, वास्तव में मध्यमापावा ही है । यहाँ से पूर्व की तरफ पचास कोस से कुछ अधिक दूर चम्पा पड़ती थी। चम्पा से विहार कर भगवान् ने पहला मुकाम जंभियगाँव में किया और केवली होने के बाद वहाँ से
१. जंबूद्दीवेदीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं गंगा महानदी पञ्च महानदीओ समप्येति तंजहा-जउणा सरऊ आदी कोसी मही (स्थानाङ्ग २१३५१)
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