Book Title: Shastra Sandeshmala Part 21
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

View full book text
Previous | Next

Page 402
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ३९ ॥ जिनपतिमतदुर्गे कालतः साधुवेषै - विषयिभिरभिभूते भस्मकम्लेच्छसैन्यैः । स्ववशजडजनानां शृङ्खलेव स्वगच्छेस्थितिरियमधुना तैरप्रथि स्वार्थसिद्ध्यै सम्प्रत्यप्रतिमे कुसङ्घवपुषि प्रोज्जृम्भिते भस्मकम्लेच्छातुच्छबले दुरन्तदशमाश्चर्ये च विस्फूर्जति । प्रौढिं जग्मुषि मोहराजकटके लोकैस्तदाज्ञापरैरेकीभूय सदागमस्य कथयापीत्थं कदर्थ्यामहे ॥ ४० ॥ पू.आ.श्रीजिनदत्तसूरिविरचिता ॥ चर्चरी ॥ नमिवि जिणेसरधम्मह तिहुयणसामियह पायकमलु ससिनिम्मलु सिवगयगामियह। करिमि जहट्ठियगुणथुइ सिरिजिणवल्लहह जुगपवरागमसूरिहि गुणिगणदुल्लहह जो अपमाणु पमाणइ छद्दरिसण तणइ जाणइ जिव नियनामु न तिण जिव कुवि घणइ । परपरिवाइगइंदवियारणपंचमुहु तसु गुणवण्णणु करण कु सक्कइ इक्कमुहु ? जो वायरणु वियाणइ सुहलक्खणनिलउ स? असद्दु वियारइ सुवियक्खणतिलउ। सुच्छंदिण वक्खाणइ छंदु जु सुजइमउ गुरु लहु लहि पइठावइ नरहिउ विजयमउ || २ ॥ 363 For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442