Book Title: Shastra Sandeshmala Part 21
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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जहि उत्तुजणक्कमु कु विकिर लोयणिहि कीरंतर नवि दीस सुविहिपलोयणिहिं । निसि न हाणु न पट्ट न साहुहि साहुणिहि निसि जुवहिं न पवेसु न नट्ट विलासिणिहि जाइ नाइ न कयग्गहु मण्णइ जिणवयणु कुणइ न निंदियकंमु न पीडइ धम्मियणु । विहिजिणहरि अहिगारिउ सो किर सलहिय सुद्ध धम्मु सुनिम्मल जसु निवसइ हियइ जित्थु ति - चउरसुसावयदिट्ठउ दव्ववउ निसिहिं न नंदि करावि कुवि किर लेइ वउ । बलि दियर अत्थमियइ जहि न हु जिणपुरउ दीसइ धरिउ न सुत्तइ जहि जणि तूररउ
यहि रहम कयाइ न कारियइ लउडारसु जहिं पुरिसु विदितउ वारियर | जहि जलकीडंदोलण हुंति न देवयह माहमाल न निसिद्धी कयअट्ठाहियह जहि सावय जिणपडिमह करिहि पइगु न य इच्छाच्छंद न दीसहि जहि मुद्धंगिनय । जहि उस्सुत्तपयट्टह वयणु न निसुणियइ जहि अज्जु जिण गुरुहु वि गेउ न गाइय हिसाव तंबोलुन भक्खहि लिति न य जहि पाणहि य धरंति न सावय सुद्धनय । भोय न य सयणु न अणुचिउ वइसणउ सह पहरणि न पवेसु न दुट्ठउ बुल्लणउ
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