Book Title: Shastra Sandeshmala Part 21
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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जहिं न हासु न वि हुड्ड न खिड्ड न रूसणउ कित्तिनिमित्तु न दिज्जइ जहिं धणु अप्पणउ । करहि जि बहु आसायण जहिं ति न मेलियहि मिलिय ति केलि करंति समाणु महेलियहिं जहिं संकंति न गहणु न माहि न मंडलउ जहिं सावयसिरि दीसइ कियउ न विटलउ । ण्हवणयार जण मिल्लिवि जहि न विभूसणउ सावयजणिहि न कीरइ जहि गिहचिन्तणउ जहिं न मलिणचेलंगिहि जिणवरु पूइयइ मूलपडिम सुइभूइ वि छिवइ न सावियइ । आरत्तिउ उत्तारिउ जं किर जिणवरह तं पि न उत्तारिज्जइ बीयजिणेसरह जहि फुल्लई निम्मलु न अक्खय-वणहलइ मणिमंडणभूसणइं न चेलइ निम्मलइ । जित्थु न जइहि ममत्तु न जित्थु वि तव्वसणु जहि न अस्थि गुरुदंसियनीइहि पम्हसणु जहिं पुच्छिय सुसावय सुहगुरुलक्खणइ भणिहि गुणण्णुय सच्चय पच्चक्खह तणइ । जहिं इक्कुत्तु वि कीरइ निच्छइ सगुणउ समयजुत्ति विहडंतु न बहुलोयह [त]णउ जहिं न अप्पु वण्णिज्जइ परु वि न दूसियइ जहि सग्गुणु वणिज्जइ विगुणु उवेहियइ । जहि किर वत्थु-वियारणि कसु वि न बीहियइ जहि जिणवयणुत्तिण्णु न कह वि पयंपियइ
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