Book Title: Shastra Sandeshmala Part 21
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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।। २८ ॥
॥ २९ ॥
।। ३०॥
इय बहुविह उस्सुत्तइ जेण निसेहियइ विहिजिणहरि सुपसस्थिहि लिहिवि निदंसियइ । जुगपहाणु जिणवल्लहु सो किं न मण्णियइ ? सुगुरु जासु सण्णाणु सुनिउणिहि वणियइ लवमित्तु वि उस्सुत्तु जु इत्थु पयंपियइ तसु विवाउ अइथोउ वि केवलि दंसियइ । ताई जि जे उस्सुत्तई कियइ निरंतरइ ताह दुक्ख जे हुंति ति भूरि भवंतरइ अपरिक्खियसुयनिहसिहि नियमइगव्वियहि लोयपवाहपयट्टिहिं नामिण सुविहियइं । अवरुप्परमच्छरिण निदंसियसगुणिहिं पूआविज्जइ अप्पर जिणु जिव निग्घिणिहिं इह अणुसोयपयट्टह संख न कु वि करइ भवसायरि ति पडंति न इकु वि उत्तरइ । जे पडिसोय पयट्टहि अप्प वि जिय धरह अवसय सामिय हुंति ति निव्वुइपुरवरह जं आगम-आयरणिहि सहुं न विसंवयइ भणहि त वयणु निरुत्तु न सग्गुणु जं चयइ । ते वसंति गिहिगेहि वि होइ तमाययणु गइहि तित्थु लहु लब्भइ मुत्तिउ सुहरयणु पासत्थाइविबोहिय केइ जि सावयई कारावहि जिणमंदिरु तंमइभावियई। तं किर निस्साचेइउ अववायिण भणिउ तिहि-पविहि तहि कीरइ वंदणु कारणिउ
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