Book Title: Shastra Sandeshmala Part 21
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 409
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ४०॥ इय निप्पुण्णह दुल्लह सिरिजिणवल्लहिण तिविहु निवेइउ चेइउ सिवसिरिवल्लहिण । उस्सुत्तइ वारंतिण सुत्तु कहतइण इह नवं व जिणसासणु दंसिउ सुम्मइण इक्कवयणु जिणवल्लहु पहु वयणइ घणई किं व जंपिवि जणु सक्कइ सक्कु वि जइ मुणइ। तसु पयभत्तह सत्तह सत्तह भवभयह होइ अंतु सुनिरुत्तउ तव्वयणुज्जयह ॥४१॥ इक्ककालु जसु विज्ज असेस वि वयणि ठिय मिच्छदिट्ठि वि वंदर्हि किंकरभावट्ठिय। ठावि(णि) ठावि(णि) विहिपक्खु वि जिण अप्पडिखलिउ फुडु पयडिउ निक्कवडिण परु अप्पर कलिउ ॥ ४२ ॥ तसु पयपंकयउ पुण्णिहि पाविउ जण-भमरु सुद्धनाण-महुपाणु करंतउ हुइ अमरु । सत्थु हुंतु सो जाणइ सत्थ पसत्थ सहि कहि अणुवमु उवमिज्जइ केण समाणु सहि !? वद्धमाणसूरिसीसु जिणेसरसूरिवरु तासु सीसु जिणचंदजईसरु जुगपवरु । अभयदेउमुणिनाहु नवंगह वित्तिकरु तसु पयपंकय-भसलु सलक्खणुचरणकरु सिरिंजिणवल्लहु दुल्लहु निप्पुण्णहं जणहं हउं न अंतु परियाणउं अहु जण ! तग्गुणह । सुद्धधम्मि हउं ठाविउ जुगपवरागमिण एउ वि मई परियाणिउ तग्गुण-संकमिण ॥४३॥ ॥४४॥ ॥ ४५ ॥ ४०० For Private And Personal Use Only

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