Book Title: Shastra Sandeshmala Part 21
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 403
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ४ ॥ ॥६॥ कव्वु अउव्वु जु विरयइ नवरसभरसहिउ लद्धपसिद्धिहिं सुकइहिं सायरु जो महिउ। सुकइ माहु ति पसंसहिं जे तसु सुहगुरुहु साहु न मुणहि अयाणुय मइजियसुरगुरुहु कालियासु कइ आसि जु लोइहिं वण्णियइ ताव जाव जिणवल्लहु कइ ना अण्णेियइ । अप्पु चित्तु परियाणहि तं पि विसुद्ध न य ते वि चित्तकइराय भणिज्जहि मुद्धनय सुकइविसेसियवयणु जु वप्पइराउकइ स वि जिणवल्लहपरउ न पावइ कित्ति कइ। अवरि अणेयविणेयहिं सुकइ पसंसियहि तक्कव्वामयलुद्धिर्हि निच्चु नमंसियहिं जिण कय नाणा चित्तई चित्तु हरंति लहु तसु दंसणु विणु पुण्णिहिं कउ लब्भइ दुलहु । सारइं बहु थुइ-थुत्तइ चित्तइं जेण कय तसु पयकमलु जि पणमहि ते जण कयसुकय जो सिद्धंतु वियाणइ जिणवयणुब्भविउ तसु नामु वि सुणि तूसइ होइ जु इहु भविउ । पारतंतु जिणि पयडिउ विहिविसइहिं कलिउ सहि ! जसु जसु पसरंतु न केणइ पडिखलिउ जो किर सुत्तु वियाणइ कहइ जु कारवइ करइ जिणेहि जु भासिउ सिवपहु दक्खवइ । खवइ पावु पुव्वज्जिउ पर-अप्पह तणउं तासु असणि सगुणहिं ज्झूरिज्जइ घणउं ॥ ७ ॥ ॥ ८ ॥ ॥ ९ ॥ 36४ For Private And Personal Use Only

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