Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 14
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 286
________________ // 108 // // 109 // // 110 / / // 111 // // 112 // // 113 // इहकिओ दुक्किओ ते पुणि, विसहंता तुहु देहु / सुमरावंतह जं न भणहि, पडियइ पन्ह म देहु जं जह दि४ि जिणवरिहिं, तं पर तारिसु होइ / एउमवि चेतिसि दुक्खु जं, हूओ कहंतु न कोइ अखंडियाहं ढुलंति जलि, भणइ कडेवरु एओ। इह जिय हुहुंतइ मह तणुं, मुणिइउ न पइं फलु लेई जीव तहारी चिंतडी, मज्झनि पसरि वियालि / हउं अच्छिसु जाएसि तुहं पुण मेलउ कहि कालि दिण पाणियजिम मच्छली तल्लोविल्लि करेइ / विणु पुन्निहिं तिव देहडी, कोडी गुणिय करेइ संपुन्नसंजमो वि हु सुव्वंतो धम्मिएहि पुनकए। . तइया वि जइ न तोसं अहं वहिस्सं फुडमधन्नो गायंतपढ़तेहिं लोएहिं विविहकव्वबंधेहिं / केहि वि निदंतेहिं समचित्तो होसुऽहं कइया . वपिंडी आहारो वत्थं पुण जं व तं वं धम्मकए। पाणं च आरनालं संजमजोगं पसाहतो निंदाए न हु रोसो तोसो नेव परकयप्पसंसाए / गामाइसु विहिरंतो कइया होहं इयचरित्तो ! तं तीए निदाए पुणो पुणो चोइओ वि जह सुगइ / तह तंदासेवाए धम्मत्थं चोइओ वि ज़िओ विरल च्चिय केइ जई नामजईणं तु नत्थि इह संखा। मुत्तुं परपरिवायं तम्हा चिंतेसु अप्पाणं सूहवदूहवनामा लच्छिअलच्छी य तिजयविक्खाया। तहय सलूणअलूणा सलक्खण अलक्खणा अवरा // 114 // // 115 // // 116 // // 117 // // 118 // // 119 // - 277

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