Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 14
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 320
________________ आत्मारामं मनो यस्य, मुक्त्वा संसारसंकथाम् / अमोघामृतधाराभिः, सर्वाङ्गीणं स सिच्यते .. // 12 // एवं ध्यानरता येऽत्र, तेऽपि धन्या गुणोन्मुखाः / वेषमात्रेण ये तुष्टास्तेऽनुकम्प्या मनस्विनाम् // 13 // उद्यमे धर्तुमात्मानं, ध्येयं स्मर्तुं प्रतिक्षणम् / हितवाञ्छो जनः सर्वोऽप्येतद्ध्यानपरो भवेत् // 14 // धर्मं कर्तुं यदीच्छाऽस्ति, तदा वीक्षस्व सादरम् / आत्मानुशासनं सूरेः, श्रीजिनेश्वरसंज्ञिनः // 15 // संसारानित्यतां बुध्ध्वा, ये तिष्ठन्ति निराकुलाः / ते नूनं वह्निना दीप्ते, शेरते निर्भरं गृहे // 16 // योवनैश्वर्य्यभूपालप्रसादप्रमुखैर्मदैः / भूयांसः स्वं स्थिरं मत्वा, कोट्या. गृह्णन्ति काकिनीम् // 17 // गतानुगतिको भूत्वा, मा त्वं स्वपिहि निर्भरम् / पतन्तं वीक्ष्य कूपेऽन्धं, सज्जाक्षस्तत्र किं विशेत् ? // 18 // देहो यन्त्रमिदं मूढा, बह्वपायं प्रतिक्षणम् / दृष्टान्तं शकटं दृष्ट्वा, बुध्यध्वं किं न सत्वरम् ? // 19 // हुं हुं हा ! दैव ! धिंग् धिग् मे, जानतोऽपि न चेतना / बद्धायुः श्रेणिक: किं. वा, नागच्छत्प्रथमां महीम् ? // 20 // भुक्त्वाऽद्यावधि धिग् भोगान्महद्भिर्निन्दितांस तथा / यथा देही विदेहः सन्, निर्वृत्तौ निर्वृतः कुतः ! // 21 // राकाशशाङ्कसङ्काशं, प्राप्य जैनेश्वरं वचः / जन्तो ! सद्भावपीयूषस्ततेान्तं विनाशय // 22 // . दृष्टादृष्टैर्मम त्रैध, क्षन्तव्यं सर्वजन्तुभिः / स्वल्पेनाप्यपराधेन, सिद्धा मे सन्तु साक्षिणः // 23 // . 311

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