Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 14
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
View full book text
________________ आणंदंसुणिवायं इय वयणपुरस्सरं विहेऊणं / गुरुभणियकज्जसज्जो संजाओ देवसूरि त्ति // 4 // // मृत्युमहोत्सवः // मृत्युमार्गे प्रवृत्तस्य, वीतरागो ददातु मे / समाधिबोधौ [धी] पाथेयं, यावन्मुक्तिपुरी पुरः // 1 // कृमिजालसमाकीर्णे, जर्जर देहपञ्जरे / भज्यमाने न भेतव्यं, यतस्त्वं ज्ञानविग्रहः // 2 // ज्ञानिन् ! भयं भवत् कस्मात्, प्राप्ते मृत्युमहोत्सवे / स्वरूपस्थो पुरं याति, देही देहान्तरस्थितिः सुदत्तं प्राप्यते यस्मात्, दृश्यते पूर्वसत्तमैः / भुज्यते स्वर्भवं सौख्यं, मृत्युभीतिस्त्यजेच्छनैः आगर्भाद् दुःखसंतप्तः, प्रक्षिप्तो देहपञ्जरे। नात्मा विमुच्यतेऽन्येन, मृत्युभूमिपति विना // 5 // सर्वदुःखप्रदं पिण्डं, दूरीकृत्यात्मदर्शिभिः / मृत्युमित्रप्रसादेन, प्राप्यन्ते सुखसंपदः // 6 // मृत्युकल्पद्रुमे प्राप्ते, येनाऽऽत्मार्थो न साधितः / निमग्नो जन्मजम्बाले, स पश्चात् किं करिष्यति // 7 // जीर्णदेहादिकं सर्वं, नूतनं जायते यतः। . स मृत्युः किं न मोदाय, सतां सातोत्थितिर्यथा सुखं दुःखं सदा वेत्ति, देहस्थः स स्वयं व्रजेत् / मृत्युभीतिस्तदां कस्य, जायते परमार्थतः // 9 // संसारासक्तचित्तानां, मृत्योर्भीतिर्भवेनृणाम् / मोदायते पुनः सो हि, ज्ञानवैराग्यवासिनां [शालिनाम्] // 10 // 299 // 8 //
![](https://s3.us-east-2.wasabisys.com/jainqq-hq/545ec15d2d070b287340176d1f2c34ad0b829c2ee593d2188f19a116b43e8980.jpg)
Page Navigation
1 ... 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330