Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 14
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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________________ // 4 // पण्डितश्रीपार्श्वनागगणिविरचितम् // आत्मानुशासनम् // सकलत्रिभुवनतिलक, प्रथमं देवं प्रणम्य सर्वज्ञम् / आत्मानुशासनमहं, स्वपरहिताय प्रवक्ष्यामि समविषमभित्तियोगे, विविधोपद्रवयुतेऽतिबीभत्से / अहिवृश्चिकगोधेरक-कृकलासगृहोलिकाकीर्णे कारावेश्मनिवासे, भूशयनं जनविमईसङ्कोचः / साधिक्षेपालापाः, शीतातपवातसन्तापाः // 3 // मूत्रपुरीषनिरोधः; क्षुत्तृट्पीडाविनिद्रताभीतिः / अर्थक्षतिरन्यदपि च, चित्तवपुः क्लेशकृत्प्रचुरम् अनुभूतं सकलमिदं, पूर्वार्जितकर्मपरिणतिवशेन / ' संसारे संसरता, प्रत्यक्षं जीव ! भवतेह मनसापि न वैराग्यं, व्रजसि मनागपि तथापि मूढात्मन् ! / / गुरुकर्मप्रारभारा-वेष्टित ! निनष्टसच्चेष्ट ! उद्विजसे दुःखेभ्यः, समीहसे सर्वदैव सौख्यानि / अथ च न करोषि तत्त्वं, येन भवत्यभिमतं सकलम् // 7 // यज्जीव ! कृतं भवता, पूर्वं तदुपागतं तवेदानीम् / किं कुरुषे परितापं, सह मनसः परिणतिं कृत्वा // 8 // यदि भोः पूर्वाचरितैरशुभैः, संढौकितं तवाशर्म / तत्किं परे प्रकुप्यसि, सम्यग्भावेन सह सर्वम् // 9 // मा व्रज खेदं मा गच्छ, दीनतां मा कुरु व चित्कोपम् / तत्परिणमत्यवश्यं, यदात्मनोपार्जितं पूर्वम् // 10 // सुखदुःखानां कर्ता, हर्ताऽपि न कोऽपि कस्यचिज्जन्तोः / / इति चिन्तय सद्बुद्ध्या, पुराकृतं भुज्यते कर्म // 11 // 303
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