Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 14
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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________________ "दुःखानि दिवसं गतं न रजनी, रजनी याता न याति दिवसं च / दुष्कृतिनां पुरुषाणा-मनन्तदुःखौघतप्तानाम् // 48 // इह जीवतां परिभवो, घोरे नरके गतिम॑तानान्तु / किं बहुना जीवानां, पापात्सर्वाणि दुःखानि // 49 // ये स्वामिनं गुरुं वा, मित्रं वा वञ्चयन्ति विश्वस्तम् / अपरं तु नास्ति तेषां, नूनं सुखमुभयलोकेऽपि // 50 // सत्यं जीवेषु दया, दानं लज्जा जितेन्द्रियत्वं च / / गुरुभक्तिः श्रुतममलं, विनयो नृणामलङ्कारः // 51 // यद्भक्तिः सर्वज्ञे, यद्यलस्तत्प्रणीतसिद्धान्ते / यत्पूजनं गुणानां, फलमेतज्जीवितव्यस्य // 52 // चिन्तयितामशुचित्वं, हितवचनं श्रृण्वतां शमं दधताम् / सन्मानयतां मुनिजन-महो नयन्तीह पुण्यवताम् // 53 // परिहतपरिनिन्दानां, सर्वस्योपकृतिकरणनिरतानाम् / धन्यानां जन्मेदं, धर्मपराणां सदा व्रजति . // 54 // मानुषतामायुष्कं, बोधि च सुदुर्लभां सदाचारम् / नीरोगतां च सुकुले, जन्म पटुत्वं च करणानाम् // 55 // आसाद्यैवं सकलं, प्रमादतो मा कृथा वृथा हन्त / / स्वहितमनुतिष्ठ तूर्णं, येन पुनर्भवसि नो दु:खी // 56 // सामग्री परिपूर्णा-मवाप्य विदुषा तदेव कर्त्तव्यम् / संसृतिंगहने भीमे, भूयोऽपि न भूयते येन // 57 // यावच्छरीरपटुता यावन्न जरा न चेन्द्रियग्लानिः / तावन्नरेण तूर्णं स्वहिते प्रत्युद्यमः कार्यः // 58 // त्यज हिंसां कुरु करुणां, सम्यक् सर्वज्ञशासनेऽभिहिताम् / विजहीहि मानमाया-लोभानृतरागविद्विषान् / / 59 // 307
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