Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 14
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 306
________________ // 31 // // 32 // // 33 // // 34 // // 35 // // 36 // आणंदसूरिपमुहा जयंतु तुह बंधवा जयप्पयडा / जे तुमए दिक्खविया सिक्खविया सूरिणो य कया अव्वो अउव्वमेयं किंपिय तुम्हाण भवियगयकुडुंब ! / संसारवल्लरीलूरणम्मि जं गयकुलेण समं नीसेसं तुह चरियं सव्वजियाणंदकारणं चेव / जंतु न नेहो कत्थ वि तं मह हियए खुडुक्केइ मन्नामि सामि ! हिययं वज्जसिलासंपुडेण तुह घडियं / पडिबंधबंधुरम्मि वि सीसजणे निप्पिवासं जं . जाणिय अणागयं चिय मरणं संबोहिऊण सीसगणं / गहियाणसणेण तए उवलद्धाऽऽराहणपडागा समुहेण उच्चरंतो चरिमे समयम्मि अट्ठ नवकारे। . भणह भणह त्ति जंपिर ते धन्ना जेहिं दिट्ठोऽसि सासो खासो दाहो तिन्नि वि रोगा मुणिंद ! तुह खीणा। अणसणपवित्तिसमए समयं कलुसेहि कम्मेहिं चरमसमए वि सुहगुरु ! वियलत्तं परिहरंतएण तए। सव्वत्थ एगरूवा गुरुआ सच्चावियं वयणं सच्चं सा कसिण च्चिय कत्तियमासस्स पंचमी कसिणा। खेत्तंतरं व सूरो जीए तं सग्गंमल्लीणो एगारस अट्टत्तर संवच्छरकाल ! पडउ तुह.कालो। जससेसं जेण तए तं मुणिरयणं कयं पाव! हा सिद्धंतपियामह ! हा ! माए ! ललियकव्व संपत्ति / हा ! गणियविज्जसहिए हा ! बंधव तक्कपरमत्थ हा ! छंदमुद्धपुत्तय हा ! हाऽलंकारमज्झलंकारा / हा ! कम्मपयडिपाहुडमाया ! मह भे निसामेह // 37 // // 38 // // 39 // // 40 // // 41 // // 42 // 27,

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