Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 14
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 304
________________ // 7 // // 8 // // 9 // // 10 // // 11 // करुणागंगाहिमवंतसेलमणवज्जवयणमणिखाणि / वेरग्गवग्गुमग्गप्पयट्टजणसंदणसमाणं परहियचिंताचंदणवणावलीमलयसेलसमसील / गुणिलोयविसयबहुमाणओसहीरुहणगिरिधरणी चारित्तनाणदंसणफललोलमुणिंदसउणमेरुवणं / छत्तीसगणहरगुणे सरीरलीणे सइ धरंतं दुद्धरपरीसहिदियकसायविजओवलद्धमाहप्पं / सत्थपरमत्थपयडणपणासियासेसजणमोहं हिंसाए हिंसणं दोसदूसणं रोसरूसणं वंदे / सिरिमुणिचंदमुणीसर निययगुरुं गरिमजियमेरुं मुणिचंदसूरि ! गणहरगुणाण अंतो न लब्भए तुम्ह। . किं वा सयंभूरमणे जलप्पमाणं मुणइ कोई ? भवभीरुजीवसंतोसदाइणी तुम्ह मुणिवरपवित्ती। . अहवा चिंतारयणं केसि नहु जणइ कल्लाणं? . जा तुम्ह धीरिमा धीर ! का वि नन्नत्थ तं पलोएमि / लच्छीकमलपरिमलो किमन्न नलिणाई अल्लियइ ? जह मच्छरस्स पसरो तुमए निहओ तहा न अन्नेण / वणगहणं जह चूरइ मत्तकरी नो तहा ससओ . उवसमजलेण तुमए विज्झविओ रोसदारुणदवग्गी / विणयंकुसेण अहिमाणमयगलो निग्गहं नीओ विसवल्लरी व्व माया पसरंती लूरिया तुमे नाह ! / उब्भडकरालकरवालतिक्खधारापओगेण बहु वि हवियप्पकल्लोलसंकुलो लोहजलनिही सामी!। संतोसवडवानलवसेण सोसं तुहं पत्तो // 13 // // 14 // // 15 // // 16 // // 17 // // 18 // .. रत५

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