Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 14
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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________________ // 24 // // 25 // // 26 // // 27 // // 28 // // 29 // परलोगंमि पिवासो, जीव सयाणेग घायण संपत्तो / जं जाओ दुहहेऊ, जीवाणं तं पि खामेमि आरिअखित्ते वि मए, खट्टिअ वागुरिय डुंब जाईसु / जे वहिआ मे जीवा, ते वि तिविहेण खामेमि मिच्छत्तमोहिएणं, जे वहिआ के वि धम्मबुद्धिए / अहिगरण कारणेणं, वहाविआ ते वि खामेमि दवदाण वल्लिवणयं काऊणं जे जीवा मए दट्ठा / सरदहतलाइ सोसं, जे वहिआ ते वि खामेमि सुह दुललिएणं जे, जीवा के वि कम्मभूमीसु / अंतरदीवाइसु वा विणासिआ ते वि खामेमि देवत्ते विहु पत्ते, केलिपओगेण लोहबुद्धीए / जे दूहविआ सत्ता, ते वि य तिविहेण खामेमि भवणवइणं मझे, आसुरभावम्मि वट्टमाणेणं / निद्दयहणमाणेणं, जे दुमिआ ते वि खामेमि वंतरभावम्मि गए, केलिकालभावओ अजं दुक्खं / जीवाणं संजणिअं, तं पि य तिविहेण खामेमि जोइसिएसु गएणं, विसया विसमोहिएण मूढेणं। . जो को वि कओ दुहिओ, पाणी में तं पि खामेमि पररिद्धिमच्छरेणं, लोभनिबुड्डेण मोहवसगेणं / . अभियोगेण व दुक्खं, जाणकयं तं पि खामेमि इय चउगइमावन्ना, जे के वि अ पाणिणो मए वहिआ। दुक्खे वा संठविआ, ते खामेमि अहं सव्वे सव्वं खमंतु मज्झे, अहं पि तेसिं खमामि सव्वेसिं। जं जं कयमवराहं, वेरं चइऊण मज्झत्थो // 30 // // 31 // // 32 // // 33 // // 34 // // 35 // 23
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